देशनोक। श्री करणी माता मन्दिर भारत के रहस्य्मय मंदिरो की श्रेणी में प्रथम स्थान पर आता है, इतना ही नहीं Karni Mata Temple की आस्था तो पुरे विश्व में है। करणी माता का मन्दिर कई नामो से प्रसिद्ध है, जैसे चूहों का मन्दिर या दाढ़ी वाली माता आदि। कहते है इस मंदिर में करीब 30 हजार से ज्यादा चूहे रहते है, और आज तक चूहों के कारण किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं हुई है किसी को….आज हम आपको करणी माता के इसी चमत्कारी मन्दिर के विषय में जानकारी देने जा रहे है आशा हे आपको पसंद आवेगी।
करणी माता मन्दिर का इतिहास- Karni Mata Mandir History in Hindi
मंदिरो और किलों के राज्य राजस्थान के प्रसिद्ध शहर बीकानेर से 32 किलोमीटर दूर स्थित है देशनोक नामक कस्बा और इसी पवित्र कस्बे में स्थित है श्री करणी माता मन्दिर जो असंख्य काबो ( चूहों ) के लिए विश्व विख्यात है। करणी माता के इस मंदिर के इतिहास से जुड़ी कई कथाये प्रचलित है।
मंदिर के इतिहास के विषय में खोजबीन करने पर पता चला की श्री करणी माता संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को ज्योर्तिलीन हुई थी, और उनके ज्योर्तिलीन होने के पश्च्यात ही 1595 की चैत्र शुक्ला चतुर्दशी को इसी स्थान पर माता करणी की पूजा अर्चना और भक्तो द्वारा उनकी सेवा शुरू हुई थी। दन्त कथाओं के अनुसार करणी माता मन्दिर में जो मूर्ति स्थापित है उनको बन्ना नाम के एक खाती मूर्तिकार ने जैसलमेर के पीले रंग के बलुए पत्थर से पर तराशा था।
इस अद्भुत मूर्ति पर बहुत ही सुन्दर कलात्म कार्य किया गया है, करणी माता की मूर्ति का मुख लम्बोतरा है, उनके कानो में सुन्दर कुण्डल शुशोभित है, और उनके दाहिने हाथ में एक त्रिशूल है, जिसने निचे महिष राक्षश का सर है।
Karni Mata की इस भव्य मूर्ति के गले में राजस्थानी गहना ( आड ) पहनी हुई है, और उनके बाएं हाथ में नरमुण्ड की माला पकड़ी हुई है। करणी माता की मूर्ति की ऊंचाई करीब 2 फीट है। मन्दिर परिसर में करणी माँ की 5 बहनों की मुर्तिया और 7 मूर्तिया आवड़ माता की स्थापित है।
श्री करणी माता जीवन परिचय – Karni Mata History
श्री करणी माता का अवतरण वि. सं. 1444 अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार को जोधपुर जिले की फलौदी तहसील के एक छोटे से गाँव सुहाव में हुवा था, उनके पिता का नाम मेहाजी था और उनकी माता का नाम देवल देवी था। मेहाजी कीनिया चारण वंश के थे।
श्री करणी माता अवतरण कथा
Shri Karni Mata के जन्म से पहले उनके घर में 5 कन्याओ का जन्म हो चूका था, इस कारणवश मेहाजी बहुत ज्यादा उदास रहते थे। कई वर्ष ऐसे ही गुजर गए और एकदिन मेहाजी ने अपनी आराध्या देवी हिंगलाज माता ( वर्तमान पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ) के दर्शन करने का विचार किया और माता के दर्शन हेतु यात्रा प्रारम्भ की और हिंगलाज माता के धाम पहुँच गए।
हिंगलाज माता की कई दिनों तक भक्ति और सेवा से मेहाजी पर माता प्रसन्न हुई और प्रकट होकर वर मांगने को कहाँ इस पर मेहाजी ने मातारानी से आश्रीवाद स्वरुप माँगा की उनके वंश का नाम चलता रहे, इस वर पर माँ हिंगलाज ने उनको तथास्तु कहाँ और अंतर्ध्यान हो गई। इस वरदान को प्राप्त कर मेहाजी बहुत प्रसन्न थे, और इसके कुछ बाद ही देवल देवी जी गर्भवती हो गई थी।
कहते हे की यह गर्भकाल 21 महीने चला था, जब प्रसव का समय आया तब मेहाजी को इस बार लड़का होने का पूर्ण विश्वास था। कथाओं के अनुसार एक रात्रि को देवल देवी को सपने में माँ हिंगलाज ने दर्शन दिए और कहाँ की उचित समय आने पर में खुद आपके घर में अवतरित हूँगी। अतः आप परेशान ना होवे। वि. सं. 1444 अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार को श्री करणी माता का जन्म हुवा और समस्त गाँव में खुशियों की लहर दौड़ गई।
जब रीधु बाई ( करणी माता ) का जन्म हुवा तब उनकी भुवा वही थी और उन्होंने अपने भाई के घर 6वी लड़की पैदा होने पर गुस्से में कहाँ की एक बार फिर पत्थर पैदा हुवा है घर मे इस बात पर माता करणी का चमत्कार दिखाई दिया और भुवा जी की उंगलियों को टेढ़ा कर दिया और विश्व में लड़का-लड़की एक समान होने का पहला उपदेश दिया था।
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देशनोक करणी माता मन्दिर में चूहों का चमत्कार
भारत में स्थित सभी मंदिरो में देशनोक में बना यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर को चूहों का मंदिर भी कहाँ जाता है, इस स्थान में करीब 30 हजार से अधिक चूहे रहते हे। मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को परिसर में अपने पैर घसीट कर चलना पड़ता है ताकि किसी चूहे को नुकसान ना पहुंचे।
मंदिर में इतने अधिक चूहे होने के बाद भी आज तक उनसे किसी व्यक्ति को बीमारी नहीं हुई और ना ही कोई महामारी मंदिर में फैली यह भी एक चमत्कार है माता करणी का। इन चूहों में सबसे हैरानी वाली बात है की सभी चूहे बड़े ही दिखाई देते है, कभी कोई बच्चा नहीं दिखाई देता हे, ना ही कोई मृत चूहा कही दिखाई देता है।
यहाँ मौजूद सभी चूहों को काबा नाम से पुकारा जाता है। सभी का रंग गहरा भूरा या काला है। इन सभी चूहों में एक सफेद चूहा भी है जो की बहुत दुर्लभ और कठिन रूप से दिखाई देता है। यहाँ आने वाले भक्तों का कहना हे की जिस भक्त को सफेद काबा ( चूहा ) के दर्शन हो जाये तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है, क्योकि सफेद काबा स्वं माँ करणी का स्वरुप है।
करणी माता मन्दिर कैसे पहुंचे – How To Reach Karni Mata Temple In Hindi
वैसे तो आप आसानी से तीनो मार्गो सड़क, रैल और हवाई जहाज के द्वारा आसानी से यहाँ पहुँच सकते है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से आपको बीकानेर के लिए सीधे हवाई जहाज मिल जावेगा और देशनोक वहाँ से मात्र 32 किलोमीटर ही है। सड़क मार्ग से बस और टैक्सी की सेवा और रैल तो सीधे आपको देशनोक के लिए उपलब्ध है पुरे राजस्थान में किसी भी बड़े शहर जयपुर, जोधपुर, नागौर और बीकानेर एवं जैसलमेर से।
श्री करणी माता के चमत्कार और रोचक बातें
- एक दिन जब बालिका रीधु ( करणी माता ) को उनकी भुवा नहला रही थी तब उनके एक हाथ की उंगलिया टेढ़ी होने का कारण बालिका रीधु ने उनसे पूछा तब भुवा जी ने उनको पूरी कहानी बताई ( करणी माता के जन्म की कहानी ) तब रीधु बाई ने कहाँ की भुवाजी आपकी उंगलिया तो ठीक हे आप क्यों झूठ बोल रहे हो इतने में ही भुवा जी की उंगलिया ठीक हो गई।
- इस चमत्कार की चर्चा सभी जगह होने लगी और भुवाजी ने कहाँ की यह कोई साधारण बालिका नहीं है यह विश्व में कोई बड़ा कार्य करने आई है। इसके बाद भुवाजी ने रीधु बाई के बचपन का नाम बदलकर करणी रख दिया और बाद में रीधु बाई को श्री करणी जी के नाम से ही प्रसिद्ध हुई।
- करणी माता राठौड़ राजवंश की इष्ट देवी भी है। राठौड़ो की दो प्रमुख रियासतें जोधपुर और बीकानेर पर माँ करणी की विशेष कृपा रहीं है। करणी माता मंदिर का वर्तमान स्वरुप निर्माण बीकानेर के स्व. महाराजा गंगासिंह जी ने 20वी शताब्दी के प्रारम्भ में करवाया था।
- करणी माता मन्दिर में काबा ( चूहों ) की संख्या इतनी अधिक है की दर्शन करने वालो को अपने पैर मंदिर के आँगन में घसीटते हुवे चलना पड़ता है ताकि कोई चूहा उनके पैरो में ना जाये।
- ऐतिहासिक तथ्यों के आधार और दन्त कथाओ के अनुसार करणी माता 151 साल तक जिंदा रही थी, और 1595 को ज्योतिर्लिन हुई थी।
FAQ’s
करणी माता का प्रतिक चिन्ह क्या है?
माँ करणी को आज समस्त विश्व में पूजा जाता है, किन्तु राठौड़ राजवंश में करणी माता को अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजा जाता है, और राठौड़ वंश के प्रतिक चिन्ह में भी चील को विशेष स्थान दिया गया है। इसलिए यह सर्वज्ञात है की करणी माता का प्रतिक चिन्ह चील है।
करणी माता किसका अवतार है?
करणी माता को हिंगलाज माता का अवतार माता जाता है। माँ करणी के पिता ने हिंगलाज माता ( बलूचिस्तान ) जाकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था की उनके वंश का नाम सदियों तक चलता रहेगा।
करणी माता किसकी आराधना करती थी?
श्री करणी माता आवड़ माता की पूजा आराधना करती थी। जय माँ आवड़
करणी माता मन्दिर में चूहों को क्या कहते है?
माँ करणी के इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर भी कहाँ जाता है, श्री करणी माता मंदिर में चूहों को काबा कहाँ जाता है। कहते हे की यह चूहे माता करणी के भक्त ही है जो अपनी मृत्यु के बाद यहाँ चूहे बनकर प्रकट हो जाते है अपनी माँ की सेवा भक्ति हेतु।
क्या जाना करणी माता मन्दिर के विषय में
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