खाटू श्याम का इतिहास | हारे का सहारा क्यों कहते है? Khatu Shyam Ji History Hindi

श्री खाटू श्याम का इतिहास | राजस्थान के सीकर जिले में स्थित श्री खाटू श्याम जी का मंदिर आज जन-जन की आस्था का प्रतिक है। खाटू बाबा से इस मंदिर का पौराणिक महत्व भी अत्यधिक है, इतिहास में ज्ञात तथ्यों के अनुसार खाटू श्याम जी को भगवान श्री कृष्ण के रूप में पूजा जाता है। जयपुर से करीब 80 किमी. की दूरी पर खाटू नामक शहर में निर्मित खाटू बाबा के इस भव्य मंदिर का निर्माण 1000 वर्ष से भी पूर्व हुआ था ।

Khatu Shyam ji History Hindi । हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत कालीन पांडवो में से एक भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे बर्बरीक के सर को श्री कृष्ण के वरदान स्वरूप श्याम के रूप में पूजा जाता है, आज हम इस लेख में आपको हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा , शीश के दानी श्री श्याम घणी के इतिहास से सम्पूर्ण परिचय करवाएंगे । जय श्री श्याम बाबा की 🙏

खाटू श्याम जी कौन है? संक्षिप्त परिचय – Khatu Shyam Ji

श्री खाटू श्याम का इतिहास 
खाटू श्याम का इतिहास | Khatu Shyam Ji History hindi
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित श्री खाटू श्याम जी मंदिर 
पौराणिक नाम बर्बरीक 
धर्म सनातन 
पिता का नाम महाबली घटोत्कच 
माता का नाम कामकटंककटा (मोरवी )
प्रमुख अस्त्र तीन अमोघ बाण 
दादा का नाम महाबली भीम 
जिला  सीकर 
राज्य राजस्थान, भारत 
 मंदिर निर्माता रूप सिंह चौहान 
 निर्माण काल 
1027 ईस्वी

इस परीक्षा स्वरुप जब बर्बरीक ने अपना शीश श्री कृष्ण को दान में दिया था, तब भगवान् श्री कृष्णा ने उनको वरदान दिया था की कलयुग में उनकी पूजा मैरे ( श्री कृष्ण के ) नाम से की जावेगी।

श्री खाटू श्याम का इतिहास – Khatu Shyam Ji History Hindi

श्री श्याम बाबा का इतिहास भारत के महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। पहले इनका नाम बर्बरीक था। बर्बरीक महाभारत के महाबलशाली गदाधारी भीम के पौत्र थे, अपने जीवन के बाल्यकाल से ही बर्बरीक साहसी और वीर थे। बर्बरीक ने युद्ध कला अपनी माता मोरवी से सीखी थी।

बर्बरीक ( Khatu Shyam Ji ) बड़े होकर कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर माँ दुर्गा से वरदान स्वरुप बर्बरीक को तीन अबोध बाणो का वरदान दिया था। इन बाणो में इतनी शक्ति थी की जिस भी लक्ष्य को साधकर इन्हें छोड़ा जाता वह बाण अपना लक्ष्य भेदकर वापस बर्बरीक के पास आ जाते थे। इस कारण बर्बरीक एक महान धनुर्धर बन गए थे, जिनको हराना किसी के भी बल में नहीं था।

जब कौरवों और पांडवो के मध्य महाभारत शुरू हो गया था , तब बर्बरीक ने अपनी माता से युद्ध में शामिल होने की आज्ञा मांगी। बर्बरीक की माता श्री मोरवी अपने पुत्र के बल से भलीभांति परिचित थी। इसलिए मोरवी ने अपने पुत्र से कहाँ की युद्ध में जो भी पक्ष निर्बल हो तुम उसी पक्ष में युद्ध लड़ना।

बर्बरीक का कुरुक्षेत्र पहुँचना

Khatu Shyam Ji यानि बर्बरीक अपनी माता मोरवी से आशीर्वाद प्राप्त करके कुरूक्षेत्र की और निकल पड़े। कुरूक्षेत्र पहुँचकर बर्बरीक ने अपना घोड़ा एक पीपल के वृक्ष के निचे बांध दिया और विश्राम करने लगे। बर्बरीक ( खाटू श्याम जी ) को युद्ध क्षेत्र में देखकर दोनों और की सेनाओं में कोतुहल व्याप्त हो गया। रात्रि के समय सैनिक बर्बरीक के पास आये और उनसे पूछा की महाबली आप कौन है और किस पक्ष से युद्ध में शामिल होने आये है।

बर्बरीक – मैं पाण्डु पुत्र महाबली भीम का पौत्र एवं घटोत्कच पुत्र बर्बरीक हूँ, और युद्ध में शामिल होने के लिए आया हूँ।

सैनिक – किन्तु महाबली आपकी सेना कहाँ है और आप किस पक्ष की और से युद्ध में शामिल होने आये है।

बर्बरीक – मुझे किसी सेना की आवश्यकता नहीं है, युद्ध समाप्त करने के लिए मेरे तीन अबोध बाण ही काफी है, और रही बात कौनसे पक्ष की तो मैं निर्बल पक्ष की और से युद्ध करूँगा।

खाटू श्याम जी ( बर्बरीक ) की बात सुनकर सैनिकों में वह चर्चा का विषय बन गए और दोनों और की शिविरों में बर्बरीक की बातें होने लगी की एक ऐसा योद्धा आया जो अपने तीन बाणो से ही युद्ध समाप्त कर देगा।

बर्बरीक का शीशदान एवं खाटू श्याम जी की कथा

बर्बरीक की वीरता और उनके धनुर्धारी होने की चर्चा कुरुक्षेत्र में सभी तरफ होने लगी। किन्तु कई लोगो के लिए उनकी अद्भुत क्षमता चिंता का विषय बन गई थी, जब भगवान श्री कृष्ण के पास बर्बरीक की वीरता की बात पहुँची तो उनको तनिक भी समय नहीं लगा की बर्बरीक जब देखेगा की कौरव युद्ध में निर्बल पड़ रहे है तो वह उनके पक्ष में शामिल हो जायेगा। इससे पांडवो की पराजय निश्चित है।

तब श्री कृष्ण ने कूट नीति अपनाने की योजना बनाई और खाटू श्याम जी ( बर्बरीक ) की परीक्षा लेने हेतु निकल गए। भगवान श्री कृष्ण को आते देखकर बर्बरीक ने उनको प्रणाम किया और अपना परिचय दिया।

भगवान श्री कृष्णा – पुत्र बर्बरीक क्या सच में तुम अपने तीन बाणो से युद्ध समाप्त कर सकते हो ? तुम्हारी इस बात पर मुझे तो क्या यहाँ किसी को भी तनिक विश्वाश नहीं है।

बर्बरीक – आप तो सर्वज्ञानी है भगवान ! फिर भी मैं आपको बताता हूँ। मैरे तीनों बाणो में जब मैं पहला बाण अपने लक्ष्य की और छोडूंगा तो वह अपना लक्ष्य चिन्हित करके आ जायेगा, और फिर जब मैं दूसरा बाण छोड़ूगा तो वह बाण अपना लक्ष्य साधकर मैरे पास लौट आएगा। अगर मेरा लक्ष्य इस ब्रह्माण्ड में कही भी छुपा हो तो मेरा तीसरा बाण उस लक्ष्य को साधकर आ जायेगा।

खाटू श्याम का इतिहास | Khatu Shyam ji History Hindi
खाटू श्याम जी मंदिर प्रवेश द्वार

भगवान श्री कृष्णा – पुत्र मुझे तो तुम्हारी बात पर शंका हो रही है। इसलिए तुम ऐसा करो की इस पीपल के सभी पत्तो पर अपना निशाना साधकर अपनी बात को सही सिद्ध करो।

बर्बरीक – प्रभु अगर आपकी यही इच्छा है तो मैं आपकी परीक्षा में जरूर सफल होऊंगा।

बर्बरीक ने तुणीर से पहला बाण निकाला और पीपल के पत्तो पर साध दिया, तीर पीपल के सभी पत्तो को चिन्हित कर वापस लौट आया। अब Khatu Shyam Ji ( बर्बरीक ) ने अपना दूसरा बाण भी साध दिया, दूसरे बाण ने पीपल के सभी पत्तो को भेद दिया था, किन्तु वह अभी भी आकाश में घूम रहा था। सभी चिंतन में पड़ गए की बाण वापस बर्बरीक के पास क्यों नहीं लौटा।

बर्बरीक – प्रभु लगता है आप मेरी गहन परीक्षा लेने हेतुं ही आये है, इसलिए तो आपने पीपल का एक पत्ता अपने पैर ने निचे दबा रखा है। प्रभु कृप्या अपना पैर पत्ते से हटाइये अन्यथा मेरा बाण आपने पैर को कही क्षतिग्रस्त ना कर दे।

बर्बरीक के इस कथन को सुनकर भगवान श्री कृष्णा भी तनिक सोच में पड़ गए और अपना पैर पत्ते से हटा लिए। पैर हटाते ही बाण ने अपना लक्ष्य साध दिया। यह दृश्य देखकर चारों और बर्बरीक के नाम की जय-जयकार होने लगी। भगवान श्री कृष्णा ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया, किंतु सोच में भी थे की किस तरह खाटू श्याम जी ( बर्बरीक ) को युद्ध में शामिल होने से रोका जाए ।

इसी सोच में भगवान वहां से प्रस्थान कर गए और कुछ योजना बनाने में जूट गए । संध्यकाल में बर्बरीक पीपल के पेड़ के नीचे साधना में लीन थे, उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण करके बर्बरीक के पास याचक के रूप में दान मांगने पहुंच गए और कहां…

ब्राह्मण रूपधारी ( श्री कृष्ण ) – युवक याचक को कुछ दान प्राप्त हो सकता है?

बर्बरीक – कहो ! ब्राह्मण देव, क्या अभिलाषा है आपकी । जो मेरे वश में होगा आपको जरूर दूंगा ।

ब्राह्मण – युवक जो तुम्हारे वश में है उसी की इच्छा है, बस देखना है की आज तुम मुझे दे पाते हो की नही ।

बर्बरीक – है ब्राह्मण देव अगर आप मेरे प्राण भी मांग ले तो भी आपको बिना दान दिए पीछे नहीं हटूंगा वचन देता हूं ।

ब्राह्मण – तो फिर उचित है की तुम मुझे अपने प्राण ही दे दो युवक । आज मुझे इसी दान की इच्छा है ।

ब्राह्मण देव की इस इच्छा को सुनकर बर्बरीक भी अचंभित हो गए और सोच में पड़ गए की जरूर ही ब्राह्मण वेश में कोई उसकी परीक्षा ले रहा है, तब बर्बरीक ने कहां…

बर्बरीक – है ब्राह्मण देव मैंने आपको वचन दिया है इस कारण मेरे प्राण अब आपके है, किन्तु अब आप अपना असली परिचय दे की आप कौन है?

बर्बरीक की बात सुनकर ब्राह्मण वेशधारी भगवान श्री कृष्ण अपने असली रूप में आ गए । उनका असली रूप देखकर बर्बरीक ने उनको प्रणाम किया और कहां…

बर्बरीक – है प्रभु ! मैरे प्राण तो पहले भी आपके ही थे, इसलिए मुझे तनिक भी संकोच नहीं है आपने प्राण देने में, किंतु एक बात का दुःख सदैव रहेगा की की मैं इस महाभारत युद्ध को नही देख सका ।

इतना कहकर ही बर्बरीक ने तलवार से अपना सर काटकर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में रख दिया ।

श्री कृष्ण – पुत्र बर्बरीक, आज तुमने अपने वचन की लाज रखकर अपना नाम इतिहास में सदा के लिए अमर कर दिया है, इसलिए मैं तुम्हे महाभारत युद्ध का साक्षी बनने का वरदान देता हूं, और तुमने मेरी बात का भी मान रखा है इसलिए आने वाले कलयुग में तुम्हारी पूजा मैरे नाम ( श्याम ) से होगी और तुम्हारी ख्याति पूरे संसार में फैलेगी । जिस तरह आज इस धर्म युद्ध को तुमने अपने प्राण देकर सहारा दिया है, उसी तरह तुम अपने सभी भक्तो का सहारा बनोगे ।

खाटू श्याम जी का मंदिर – Khatu Shayam Ji Temple

ज्ञात तथ्यों के अनुसार महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात बर्बरीक के सर को रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया गया था, उसी नदी में बहता हुआ बर्बरीक का सर वर्तमान खाटू नगर में आ गया था । कालांतर में रूपवती नदी सुख गई और बर्बरीक का सर मिट्टी में दब गया ।

सैकड़ों वर्षों के बाद खाटू शहर में जहां पर बर्बरीक का सर दबा हुआ था । उसी जगह एक गाय ने अपने आप दूध देना शुरू कर दिया और इसकी चर्चा जब आस-पास फैली तो गांव वालों में कोतूहल व्याप्त हो गया की आखिर उस स्थान में ऐसा क्या है?

ठीक उसी रात को खाटू के राजा रूपसिंह जी चौहान को स्वप्न आया की गांव में उक्त स्थान पर कुछ देवीय दबा हुआ है, इसलिए राजा ने वहा पर खुदाई करवाई । खुदाई में बर्बरीक का सर प्राप्त हुआ । जैसे ही बर्बरीक का सर मिला इस वक्त आकाशवाणी हुई कि यह सर महाबली भीम के पौत्र बर्बरीक का है, जिनको महाभारत के समय भगवान श्री कृष्ण ने श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था, इसलिए इनका भव्य मंदिर का निर्माण किया जाए ।

कार्तिक मास की एकादशी के दिन खाटू श्याम जी का सर मिला था और उनके मंदिर में उनकी प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी । इस कारण एकादशी को सभी भक्तों में विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता है । Khatu Shyam Ji History Hindi

खाटू श्याम का इतिहास | Khatu Shyam Ji Temple Shyam Kund
खाटू श्याम जी मंदिर श्याम कुण्ड

खाटू श्याम जी मंदिर कैसे जाएं? – How To Reach Khatu Shyam Ji Mandir In Hindi

हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नामक शहर में स्थित है, यह मंदिर जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आप यहां जयपुर से बस द्वारा आसानी से जा सकते है ।

अगर आप रेल मार्ग से जाना चाहते है तो खाटू के पास रिंगस शहर में रेल से जा सकते है और रिंगस से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर Khatu Shyam Ji Temple स्थित है आप वहां आसानी से पहुंच सकते है ।

Weather in khatu shyam temple 10 days

मार्च के महीने में ज्यादातर खाटू श्याम जी मंदिर में मौसम ठीक रहता है । क्योंकि सर्दियाँ लगभग जा चुकी होती है, और गर्मियों ने दस्तक दे दी होती है। बात करे पिछले 10 दिन के मौसम की तो ज्यादातर सूरज निकला हुवा है, और तापमान 29°C 84°F | 16°C 61°F है । अगर आप अभी श्री खाटू श्याम जी मंदिर में दर्शन करने आते हो तो आपको बहुत आनंद की अनुभूति होगी ।

खाटू श्याम मंदिर की दुरी | khatu shyam mandir rajasthan distance

अगर आप विदेश से आ रहे है दर्शन हेतु तो जयपुर अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे से किसी भी देश से सीधी यात्रा करके पहुंच सकते है, और हवाई अड्डे से खाटू श्याम जी मंदिर के लिए आपको बहुत सी सरकारी और प्राइवेट बस मिल जायेगी जो सीधे khatu Shyam Ji दर्शन हेतु ले जाएंगी । अगर आपका बजट थोड़ा ज्यादा है तो जयपुर से टैक्सी द्वारा भी खाटू श्याम जी मंदिर के दर्शन प्राप्त कर सकते है ।

FAQ’s


खाटू श्याम जी की असली कहानी क्या है?

खाटू श्याम जी का सम्बन्ध महाभारत काल से है, महान योद्धा पाण्डु पुत्र भीम के पौत्र बर्बरीक थे खाटू श्याम बाबा। जब महाभारत युद्ध में वह शामिल होने जा रहे थे तब श्री कृष्णा जी ने बर्बरीक की परीक्षा ली थी और बर्बरीक ने परीक्षा के दौरान अपना सर काटकर भगवान श्री कृष्णा के चरणों में संपर्पित कर दिया था। तब श्री कृष्णा ने उनको कलयुग में उनके नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था।


खाटू श्याम जी का असली नाम क्या है?

खाटू श्याम जी असली नाम बर्बरीक था, वह महाभारत के भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे।


खाटू श्याम में कौन से भगवान है?

खाटू श्याम जी को भगवान श्री कृष्णा के कलयुगी रूप में पूजा जाता है। खाटू श्याम अपने बाबा के दर्शन हेतु लाखो की भीड़ प्रतिवर्ष उमड़ती है।


खाटू श्याम जी को हारे का सहारा क्यों कहा जाता है?

जब बर्बरीक ने अपना सर काटकर भगवान् श्री कृष्ण को सौंप दिया था, तब भगवान् ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया था की तुम्हारे दर पर जो भी हारा हुआ जातरी अपनी प्रार्थना लेकर आएगा उसकी हर मनोकामनाएं पूर्ण होगी। इसी कथानुसार खाटूश्याम जी को हारे का सहारा कहाँ जाता है।

Vijay Singh Rathore

मैं Vijay Singh Rathore, Karni Times Network का Founder हूँ। Education की बात करूँ तो मैंने MA तक की पढ़ाई की है । मुझे नयी नयी Technology से सम्बंधित चीज़ों को सीखना और दूसरों को सिखाने में बड़ा मज़ा आता है। 2015 से मैं ब्लॉगिंग कर रहा हूँ। खाली समय में मुझे किताबें पढना बहुत पसंद है। For Contact : vijaysingh@karnitimes.com

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