रानी दुर्गावती का इतिहास | History of Rani Durgawati in Hindi – गोंडवाना की शेरनी

रानी दुर्गावती | भारत में इतिहास पर अगर नजर डाली जाए तो पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक वीरों और वीरांगनाओ की गाथाएँ भरी पड़ी है, जिन्होंने अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए अपने से कई गुना शक्तिशाली दुश्मनों के दांत खट्टे किये है । जैसे राजकुमारी रत्नावती …

रानी दुर्गावती | भारत में इतिहास पर अगर नजर डाली जाए तो पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक वीरों और वीरांगनाओ की गाथाएँ भरी पड़ी है, जिन्होंने अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए अपने से कई गुना शक्तिशाली दुश्मनों के दांत खट्टे किये है । जैसे राजकुमारी रत्नावती , रानी बाघेली आदि ।

ऐसी ही एक महान वीरांगना गोंडवाना की रानी दुर्गावती ( Rani Durgawati ) की गौरवशाली गाथा आज हम आपकों इस लेख के माध्यम से बताने जा रहे है, जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर को कई बार युद्ध मे पराजित किया था । Rani Durgavati History biography In Hindi । इन्होंने पति की मृत्यु के पश्च्यात गोंडवाना का शासन संभाला था, अपने 15 साल के शासन में इन्होंने गोंडवाना को ऊँचे शौर्य तक पहुंचाया था ।

रानी दुर्गावती का इतिहास जन्म परिचय – Rani Durgawati History in Hindi

गोंडवाना की इस वीरांगना रानी दुर्गावती जी का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कालिंजर के शासक कीर्तिसिंह चंदेल वंश में हुवा था। दुर्गावती जी अपने पिता की इकलौती संतान थी, उनका जन्म अष्ठमी के दिन हुवा था इसलिए पिता ने इनका नाम माता दुर्गा के नाम पर दुर्गावती रखा था ।

रानी दुर्गावती का इतिहास | Rani Durgawati

एकलौती संतान होने की वजह से ही रानी दुर्गावती जी अपने राजमहल में सबकी दुलारी थी, और उनमें चंचलता और निडरता तो कूट-कूटकर भरी थी । धीरे-धीरे इनकी सुंदरता और शौर्य के चर्चे समस्त गोंडवाना में फैलने लगे थे ।

अपने बचपन मे ही वह अपने पिता के साथ घुड़सवारी और शिकार पर जाती थी । उन्होंने गुरुकुल से अस्त्र-शस्त्र की दीक्षा भी ग्रहण की थी ।अपने पिता के अत्यधिक नजदीक होने के कारण रानी दुर्गावती जी ने राज कार्य और राजनीति में भी प्रारंभ से निपुणता प्राप्त कर ली थी, Rani Durgawati जी सर्वगुण सम्पन्न थी ।

रानी दुर्गावती का वैवाहिक जीवन

रानी दुर्गावती की सुंदरता और शौर्य के चर्चे समस्त भारतवर्ष में फैलते जा रहे थे, इस कारण उनके पिता को उनके विवाह की चिंता भी सताने लगी थी । रानी दुर्गावती जी के लिए समस्त भारतवर्ष से विवाह के रिश्ते आने लगे थे ।

कालिंजर ओर पड़ोसी राज्य गढ़ा मंडला के बीच किसी विवाद को लेकर युद्ध हो गया था । इस युद्ध मे दुर्गावती जी के राज्य को हार का सामना करना पड़ा और परिणामस्वरूप संधि हुई एवं गढ़ा मंडला के राजकुमार दलपतशाह के साथ रानी दुर्गावती का विवाह कर दिया गया ।

विवाह के पश्चयात दोनों राज्यो में शक्तिशाली गठबंधन हुवा । रानी दुर्गावती जी को विवाह के एक वर्ष बाद पुत्र रत्न प्राप्त हुवा, जिनका नाम नारायण सिंह रखा था । कहते है ना कि किस्मत में खुशियों का दौर ज्यादा समय तक नही रहता है, वैसा ही कुछ रानी दुर्गावती जी के साथ हुवा । जब 3 वर्षीय बालक नारायण सिंह के पिता दलतपशाह की मृत्यु हो गई थी ।

इस मुश्किल घड़ी में रानी दुर्गावती जी ने हिम्मत नही छोड़ी और अपने नन्हे पुत्र को राज्य का राजा घोषित कर राज काज अपने हाथों में ले लिया था ।

रानी दुर्गावती का शासनकाल – Rani Durgawati

स. 1550 में अपने पति दलपतशाह की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती जी ने अपने पुत्र को गद्दी पर बैठाकर खुद राज्य की संरक्षक बन गई थी । कहते है कि उनके दिल मे आम जनता के प्रति अपार प्रेम और दया के कारण प्रजा में उनके प्रति बहुत सम्मान व्याप्त हो गया था ।

रानी दुर्गावती जी ने सिंगौरगढ़ किले को अपनी मुख्य राजधानी बनाया था , किन्तु सामरिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण उन्होंने अपनी राजनीतिक कौशल से अपनी राजधानी को चौरागढ़ में स्थानांतरित कर दिया । यह किला वर्तमान में नरसिंहपुर जिले में गाडरवारा में है । चौरागढ़ किला चारों और से ऊंचे पहाड़ों और जंगलों एवं नदी नालों से घिरा होने के कारण बहुत सुरक्षित था । इस कारण दुर्गावती जी की सैन्य शक्ति बहुत सुदृढ़ हो गई थी । वही दूसरी और शेरशाह शूरी की बुरी नजर गोंडवाना के विशाल साम्राज्य पर पड़ चुकी थी ।

कहते है रानी दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना मालवा की स्थिति बहुत अधिक हो गई थी, एवम दुर्गावती जी ने अपने राज्य में प्रजाहित कई जगहों पर मंदिरों और भवनों के साथ अपने राज्य में आने-जाने वाले राहगीरों के लिए कई धर्मशालाएं भी बनवाई थी । कुछ समय बाद युद्ध मे शेरशाह की मृत्यु हो गई, और उसके राज्य पर सुजात खान ने कब्जा कर लिया ।

रानी दुर्गावती का इतिहास | rani durgavati biography in hindi

सुजात खान बहुत महत्वकांक्षी शासक था । इसी मंशा के कारण उसने रानी दुर्गावती जी को महिला और कमजोर समझकर उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया । किन्तु वीरांगना दुर्गावती जी के मजबूत इरादों और कुशल नेतृत्व के कारण सुजात खान की पराजय हुई । इस विजय से रानी दुर्गावती जी की कीर्ति और अधिक फैल गई ।

अकबर का रानी दुर्गावती के राज्य पर आक्रमण

रानी दुर्गावती की कीर्ति आगरा तक पहुंच चुकी थी, और उनके बढ़ते प्रभाव के कारण मुगल बादशाह अकबर की भी नींद उड़ चुकी थी । किन्तु वीरांगना से बिना बात के युद्ध करना उसे अपनी बहुत बड़ी बेवकूफी लगी । क्योंकि वह जानता था कि एक कमजोर महिला समझने की भूल करेगा तो मुह की खायेगा ।

अकबर ने कूटनीति चली और रानी दुर्गावती के पास संधि संदेश भेजा कि वह युद्ध करना नही चाहता और उसे दोस्ती के रूप में आपसे आपका प्रिय सफेद हाथी सरमन और आपका वजीर आधारसिंह भेंट स्वरूप चाहिए । वरना मुगल सल्तनत आपसे युद्ध करने को मजबूर हो जाएगा ।

स्वाभिमानी रानी दुर्गावती जी ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया, इस कारण अकबर को युद्ध करने की वजह मिल गई । अकबर ने अपने करीबी रिश्तेदार आसफ खां को सेना का नेतृत्व देकर आक्रमण के लिए भेज दिया । आसफ खां ने गोंडवाना पर आक्रमण कर दिया । इस युद्ध के लिए दुर्गवाती जी पहले से तैयार थी, जबलपुर के नजदिन दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुवा । इस युद्ध मे मुगलो के पांव उखड़ गए और उनकी सेना युद्ध छोड़कर भाग गई ।

रानी दुर्गावती का वीरगति को प्राप्त होना

इस हार से अकबर तिलमिला गया था, और एक विशाल सेना को तोपखानों के साथ गोंडवाना की तरफ रवाना कर दिया । इस बार मुगल सेना ने अपनी सारी शक्ति इस युद्ध मे झोंक दी थी, किन्तु रानी दुर्गावती के मजबूत इरादे इस बार कुछ और ही थे ।

24 जून 1564 के दिन दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुवा । दुर्गावती जी और उनकी सेना ने केसरिया धारण कर युद्ध किया । युद्ध मे दोनों ओर भारी क्षति हुई , इसी बीच एक तीर रानी दुर्गावती के आंख में आकर लग गया और वह अत्यधिक घायल हो गई ।

Rani Durgawati जी ने अपने पुत्र को सुरक्षित युद्ध से निकाल दिया, अब वह जान चुकी थी कि मृत्यु निश्चित है । इसलिए अपने सेनापति से कहाँ की हमे आखिरी युद्ध करना है अब । गोंडवाना के शेरों ने अपनी तलवारे खिंच ली और शाका किया । दुर्गावती जी ने दुश्मन को अपने आपको शोपने से अच्छा मरना मंजूर था, इसलिए अपनी तलवार से ही अपनी गर्दन काटकर इतिहास में अपना नाम सदा के लिए अमर कर लिया ।

रानी दुर्गावती के बाद राज्य और उनकी समाधि

रानी दुर्गावती जी के वीरगति को प्राप्त होने के बाद भी गोंडवाना ओर मुगलो के बीच संघर्ष चलता रहा । अकबर कई वर्षों बाद भी गोंडवाना पर सम्पूर्ण अधिकार नही कर सका था । अब दुर्गावती जी के पुत्र नारायणसिंह ने सेना की बागडोर अपने हाथ मे ले ली थी । अकबर और नारायणसिंह के बीच कई युद्ध हुवे । अंत मे एक युद्ध मे वीर नारायणसिंह भी कमधज हो गए ।

रानी दुर्गावती जी के बलिदान के बाद बरेला नामक स्थान जहाँ उन्होंने वीरगति प्राप्त की थी, वर्तमान में रानी दुर्गावती जी की समाधि बनी हुई है । इतिहास में दर्ज 24 जून की तारीख स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गई और आज भी हम रानी दुर्गावती जी के बलिदान दिवस के रूप में मनाते है ।

रानी दुर्गावती से जुड़े रोचक तथ्य – Rochak Facts About Rani Durgawati

  • रानी दुर्गावती जी के सम्मान में भारत सरकार ने 24 जून 1988 को डाक टिकट जारी किया था ।
  • गोंडवाना की वीरांगना दुर्गावती जी ने अपने जीवन काल मे 52 युद्ध लड़े थे, इनमे से 51 में उन्होंने अपने दुश्मनों को पराजय का मुख दिखाया था, ओर अपने अंतिम 52वे युद्ध मे केशरिया धारण कर वीरगति को प्राप्त हो गई थी ।
  • मध्यप्रदेश सरकार ने 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर “रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय” कर दिया था ।
  • रानी दुर्गावती घुड़सवारी के साथ शिकार की भी शौकीन थी । कहते है कि शेर दिखाई देने पर जब तक उसका शिकार ना कर ले दुर्गावती जी पानी तक नही पीती थी ।
  • Rani Durgawati जी ने तीनों मुस्लिम शासकों को हार का मुह चखाया था । एक बार शेरशाह शूरी ओर फिर आजम खां एवम अंत मे अकबर को भी एक बार पराजित कर भागने पर मजबूर कर दिया था ।
  • रानी दुर्गावती जी के सम्मान में जबलपुर ओर मंडला नामक स्थान के मध्य बरेला में आज भी उनकी समाधि बनी हुई है, जिनके आगे हजारों श्रद्धालु नतमस्तक होते है ।
  • अपने 15 साल के शासनकाल में उन्होंने सैकड़ो मंदिर और धर्मशालाओ का निर्माण करवाया था ।

FAQ’s

रानी दुर्गावती जी का विवाह किसके साथ हुवा था?

रानी दुर्गावती जी का विवाह मंडला के राजकुमार दलपतशाह के साथ हुवा था।

रानी दुर्गावती का नाम इतिहास में क्यों अमर है?

गोंडवाना की रानी दुर्गावती जी ने अपने जीवन में लड़े 52 युद्धों में से 51 में विजय प्राप्त थी। अपने पति की मृत्यु के बाद 15 सालो शासन किया था, और भारत के तीन ताकतवर मुस्लिम शासको को धूल चटाई थी। इसलिए रानी दुर्गावती जी का नाम इतिहास में सदा अमर रहेगा।

रानी दुर्गावती जी की पुण्यतिथि कब आती है?

अकबर से युद्ध के दौरान उन्होंने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था, इसी युद्ध में 24 जून 1564 को रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुई थी। अतः उनकी पुण्यतिथि 24 जून को आती है।

रानी दुर्गावती जी की जयंती कब आती है?

रानी दुर्गावती जी की जयंती जन्म 5 अक्टूबर 1524 को आती है। वीरांगना दुर्गावती जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कालिंजर के शासक कीर्तिसिंह राजपूत चंदेल वंश में हुवा था।

निष्कर्ष – रानी दुर्गावती एक महान वीरांगना

आशा हे आपको गोंडवाना की इस वीरांगना रानी दुर्गावती का इतिहास पर लिखा यह लेख पसंद आया होगा। हम अपनी इस वेबसाइट पर समय-समय पर राजपूत वीरों और वीरांगनाओ के इतिहास से जुडी जानकारियाँ साझा करते रहते है। अतः आप हमारे साथ जुड़े रहे।

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Vijay Singh Rathore

मैं Vijay Singh Rathore, Karni Times Network का Founder हूँ। Education की बात करूँ तो मैंने MA तक की पढ़ाई की है । मुझे नयी नयी Technology से सम्बंधित चीज़ों को सीखना और दूसरों को सिखाने में बड़ा मज़ा आता है। 2015 से मैं ब्लॉगिंग कर रहा हूँ। खाली समय में मुझे किताबें पढना बहुत पसंद है। For Contact : vijaysingh@karnitimes.com