10 Facts about Maharana Pratap History in Hindi | महाराणा प्रताप का इतिहास और जीवन परिचय

महाराणा प्रताप। अगर आप ऐतिहासिक तथ्यों को जानने के सदैव तत्पर रहते हो और आपने मेवाड़ के महाराणा प्रताप का इतिहास ना पढ़ा हो ऐसा हो ही नही सकता हैं । भारतीय इतिहास में अगर कोई नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया हो तो सबसे ऊपर Maharana Pratap Singh Sisodiya का होगा । मेवाड़ी शेर ने मुगलों की नीव हिला दी थी । बादशाह अकबर तो उनके डर से एक बार भी युद्ध में उनके सामने नहीं आया था ।

मेवाड़ के सिसोदिया वंश में जन्मे कुंवर प्रताप की कथा और उनका जीवन आने वाली सैकड़ों पीढ़ियों तक प्रेरणा का स्रोत रहेगी । उन्होंने क्षत्रिय कुल की मर्यादा और धर्म का आजीवन निर्वहन किया और अपनी प्रजा की रक्षा और अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना सर्वोसव न्योछावर कर दिया था ।

राजस्थान की धरती पर सैकड़ो वीर योद्धा और वीरांगनाएं हुई हैं, जिन्होंने अपने शत्रुओं के दांत खट्टे किए थे । मेवाड़ की धरती पर एकलिंगजी दीवान महाराणा प्रताप की वीरता और शौर्य का आलम यह था की मुगल बादशाह अकबर तो उनका नाम सुनकर भी नींद से जाग जाया करता था ।

“मायड़ एहड़ो पूत जण, जेहड़ो राणा प्रताप ।

अकबर सूतो ओझ के, जाण सिराणे सांप।।”

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महाराणा प्रताप का इतिहास और जीवन परिचय | Maharana Pratap History in Hindi

मेवाड़ की पावन धरा पर 9 मई 1540 ईस्वी को कुंभलगढ़ में सिसोदिया राजवंश के राणा उदयसिंह जी के धर जन्म हुआ था कुंवर प्रताप का । महाराणा प्रताप का परिचय भारतीय इतिहास में अपनी दृढ़ता एवम् वीरता के साथ मातृभूमि के रक्षक के रूप में कि जाति हैं ।

महाराणा प्रताप जीवन परिचय
नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया
पिता राणा उदयसिंह सिसोदिया
माता रानी जयवंता कँवर
जन्म 9 मई 1540 ईस्वी राजसमंद के कुम्भलगढ़ दुर्ग में
रियासत मेवाड़ रियासत
वंश सिसोदिया वंश
धर्म क्षत्रिय धर्म
शिक्षक आचार्य राघवेंद्र
पत्नी का नाम महारानी अजबदे सही कुल 11 पत्निया थी
पुत्र सबसे बड़े अमरसिंह सिसोदिया प्रथम सहित कुल 17 पुत्र थे
राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 को गोगुन्दा में हुआ था
प्रसिद्ध युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध, दिवेर का युद्ध ( मैराथन युद्ध )
वाहन चेतक घोड़ा, रामप्रसाद हाथी
लम्बाई 7.4 फिट
अस्त्र-शस्त्र का वजन भाला और कवच के साथ दो तलवारों का कुल वजन 208 किलोग्राम था
मृत्यु 19 जनवरी 1597 को चांवड नामक स्थान पर

महाराणा प्रताप का प्रारंभिक जीवन | Maharana Pratap Life Story in Hindi

Maharana Pratap सिसोदिया वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक हुवे हैं । उनके जन्म से पूर्व भी मेवाड़ में अनेकों शूरवीर योद्धा हुवे जैसे :- बप्पा रावल , राणा कुम्भा, राणा सांगा और राणा उदयसिंह आदि। जिन्होंने अपनी तलवार के पराक्रम के बल पर अपने शत्रुओं की निंदे उड़ा दी थी । महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ईस्वी को हुआ था । बचपन में Maharana Pratap को कीका नाम से पुकारा जाता था । बचपन से ही कुंवर प्रताप स्वभाव से चंचल किंतु प्रजा और राजमहल के प्रिय थे ।

Maharana Pratap Childhood photo with Maharani Jaywanta Kanwar
महाराणा प्रताप के बचपन का फोटो । Cradit: Mandeep Sharma, Udaipur

बचपन से ही कुंवर प्रताप को राणा उदयसिंह जी ने तलवार और ढाल की शिक्षा दी थी । थोड़ा बड़ा होनेपर महाराणा प्रताप को उच्च शिक्षा हेतु गुरु राघवेंद्र के पास भेज दिया गया था । जहां उन्होंने अस्त्र-शस्त्र के साथ भाला और घुड़सवारी में भी महारथ हासिल की थी । अपने मिलनसार स्वभाव और सीखने की ललक ने उनको अपने माता-पिता के साथ प्रजा का भी दुलारा बना दिया था ।

बड़े होनेपर महाराणा प्रताप का विवाह बिजौलिया की राजकुमारी अजबदे पंवार से हुआ था, इसके बाद उनकी 10 शादियां और हुई थी । उनके सबसे बड़े बेटे अमरसिंह सिसोदिया प्रथम के अलावा 16 बेटे और भी थे । अपने पिता राणा उदयसिंह जी की मृत्यु के बाद वह 28 फरवरी 1572 को मेवाड़ की राजगद्दी पर विराजमान हुए थे । Maharana pratap biography in hindi

अकबर का मेवाड़ पर आक्रमण और चितौड़ का तीसरा शाका

मुगल बादशाह अकबर ने अपनी साम्राज्य विस्तार नीति के चलते समस्त भारत में कोहराम मचा रखा था, कई राजाओं ने अकबर के साथ घोर युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुए । अपनी इसी नीति के तहत उसकी नजर मेवाड़ रिसायत पर पड़ी और अकबर ने 1567 में चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया ।

अकबर ने चितौड़ किले को चारों तरफ से घेर लिया था, इस कारण किले में करीब 8000 राजपूत सैनिकों सहित 40000 से अधिक मेवाड़ की प्रजा किले में ही कैद हो गई । अकबर ने किले का घेराव कई महीनों तक किया । इस कारणवश किले के अंदर खाने-पीने की सामग्री खत्म हो गई । तब मेवाड़ हित और प्रजा रक्षण हेतु राजपरिवार को सुरक्षित किले से बाहर निकालकर मेवाड़ की सेना ने जयमल मेड़तिया और पत्ता जी के नेतृत्व में केसरिया पहन अंतिम युद्ध शाका करने का निर्णय किया ।

राजपूतों ने भयंकर युद्ध किया और अपनी अंतिम स्वास तक युद्ध कर मातृभूमि की रक्षा हेतु शाका किया और किले के अंदर सभी रानियों और क्षत्राणियों ने जौहर अग्नि स्नान किया । यह युद्ध मेवाड़ के इतिहास में तीसरा शाका और जौहर था । धन्य है वह वीर योद्धा जिन्होंने अपना सर्वोस्व बलिदान दिया, धन्य हैं वह क्षत्राणियां जिन्होंने अग्नि स्नान किया किंतु अपनी आन पर एक आंच भी नही आने दी ।

हल्दीघाटी का युद्ध | Haldighati War

भारत के इतिहास में हल्दीघाटी का युद्ध एक भयंकर और विनाशकारी युद्धों में से एक गीना जाता हैं । मेवाड़ के उदयपुर शहर से नाथद्वारा जाने वाले मार्ग के मध्य अरावली पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों के बीच एक स्थान हैं, हल्दीघाटी जहां लड़ा गया था विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध ।

Maharana Pratap Stechu in Udaipur City

18 जून 1576 को मेवाड़ और अकबर की सेना के मध्य भयंकर हल्दीघाटी युद्ध हुआ । इस युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह प्रथम कर रहे थे । मेवाड़ की सेना ने महाराणा प्रताप के नेतृत्व में भीलों और स्थानीय सामंतो ने अकबर की सेना से लोहा लिया था ।

इस युद्ध में मेवाड़ की सेना में करीब 3000 सैनिक और 400 भील धनुर्धारी योद्धा सामिल थे, दूसरी तरफ मुगल सैनिकों की संख्या 10000 से पार थी । हल्दीघाटी के दर्रे में भयंकर युद्ध हुआ । कहते हैं इस युद्ध में मेवाड़ी योद्धाओं ने तीन घंटे में ही मुगल सेना को हिला दिया था । इस युद्ध में मुगलों के करीब 7500 से अधिक सैनिक मारे गए और मेवाड़ के करीब 1600 सैनिकों और सामंतो से वीरगति प्राप्त की । युद्ध में Maharana Pratap अत्यधिक घायल हो गए थे, इस कारण मेवाड़ के सामंतो ने मेवाड़ हित उनको युद्ध से बाहर जाने का आग्रह किया, किंतु महाराणा प्रताप इसके लिए राजी नहीं हुए । अतः झाला मानसिंह जी ने महाराणा का मुकुट धारण कर युद्ध लड़ना शुरू कर दिया ।

मुगल सेना भ्रमित हो गई और झाला मान पर आक्रमण करने लगी । इस परिस्थिति और मेवाड़ के भविष्य को देखते हुए महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी युद्ध से बाहर जाना पड़ा ताकि भविष्य में वापस शक्ति एकत्रित कर सके । इस युद्ध में झालामान ने अपना बलिदान दिया एवम् ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर ने अपने तीन पुत्रों सहित सैकड़ों तोमर सैनिकों ने मेवाड़ रक्षा हेतु वीरगति प्राप्त हुए ।

अकबर हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी हार को सहन नही कर पाया और मेवाड़ में चारो और लूट मार शुरू कर दी और चित्तौड़गढ़ पहुंच गया । किले में अकबर को कोई भी राजपरिवार का सदस्य नहीं मिला । इस कारण अकबर का महाराणा प्रताप को पकड़ने का सपना अधूरा रह गया । दूसरी और Maharana Pratap अपनी शक्ति को पुनः एकत्रित करने हेतु पहाड़ों और जंगलों में चले गए ताकि अकबर के सभी प्रयास विफल हो सके ।

वीर घोड़े चेतक का बलिदान

हल्दीघाटी के युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने अकबर के सेनापति मानसिंह पर आक्रमण किया था, तब उसके हाथी के सिर पर चेतक ने अपने पांव रख दिए थे । इस दौरान हाथी के सर पर रक्षा कवच से चेतक का पैर गंभीर रूप से घायल हो गया ।

उसके बाद जब महाराणा को हल्दीघाटी युद्ध से बाहर जाना था, तब रास्ते में एक 28 फीट लंबा पानी का नाला आ गया । महाराणा के पीछे मुगल सैनिक लगे थे । इसलिए चेतक ने अपना स्वामिभक्ति धर्म निभाया और उस नाले के ऊपर से छलांग लगा दी । इतनी लंबी छलांग और पहले से पैर घायल होने के कारण नाले के पार होते ही मेवाड़ के वीर स्वामिभक्त घोड़े ने वीरगति प्राप्त की ओर अपने स्वामी की रक्षा की ।

विश्व इतिहास में चेतक एकमात्र घोड़ा हैं, जिसकी याद और बलिदान में आज भी गीत गाए जाते हैं । जहां चेतक ने बलिदान दिया वही उसकी समाधि बनी हुई हैं । चेतक पर अनेकों कविताएं और गीत लिखे गए हैं । धन्य हैं अमर बलिदानी स्वामिभक्त चेतक !

दिवेर का युद्ध | Battle of Diver in Hindi

हल्दीघाटी के युद्ध में मिली हार से अकबर बौखला गया था, उसने मेवाड़ में जगह-जगह अपनी सैनिक छावनिया बिछा दी थी ताकि महाराणा प्रताप को पकड़ सके । अकबर ने 5 सालो से भी अधिक समय Maharana Pratap को पकड़ने में लगाया किंतु उसे निराशा ही हाथ लगी ।

दूरी और महाराणा प्रताप ने अपनी सैनिक शक्ति को वापस मजबूत कर लिया था, और अलग रणनीति गुरिल्ला युद्ध के साथ लड़ाई शुरू कर दी । मेवाड़ी सैनिकों के इस तरह युद्ध करने से अकबर को भरी क्षति पहुंची । परेशान होकर अकबर ने अपनी सभी टुकड़ियों को एकत्रित करना शुरू कर दिया ।

महाराणा प्रताप ने भी अपनी सेना को इकट्ठा कर दिवेर के छापली नामक स्थान को अपना केंद्र बनाया और 1582 को विजयदशमी के दिन अकबर की सेना पर आक्रमण कर दिया ।

इस युद्ध में मेवाड़ की सेना के एक भाग को खुद महाराणा और दूसरी टुकड़ी को कुंवर अमरसिंह सिसोदिया नेतृत्व कर रहे थे । अमरसिंह की सेना टुकड़ी ने स्थानीय सामंतो के साथ मिलकर अकबर की सेना पर भीषण प्रहार किया । इस प्रहार से मुगल सेना भौचक्की रह गई । कहते हैं की कुंवर अमरसिंह सिसोदिया ने अपने भाले से अकबर के सेनापति सुल्तान खां के हाथी पर हमला किया । जिससे उसके हाथी की तुरंत मौत हो गई ।

सुल्तान खां ने घोड़े पर बैठकर युद्ध शुरू किया तब कुंवर अमरसिंह ने अपने भाले से पुनः उसपर प्रहार किया तब भाला सुल्तान खां के शरीर को चीरता हुआ घोड़े के आर-पार होकर जमीन में धस गया । यह नजारा देखकर अकबर की सेना की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, और मैदान छोड़कर भागने लगी ।

विस्तार से पढ़े :- दिवेर का युद्ध ( मेवाड़ का मैराथन )

अकबर की हार और उसकी सेना का आत्मसमर्पण

दिवेर के युद्ध में अकबर के प्रमुख सेनापति की दुर्दशा देखकर अकबर की सेना में मेवाड़ी योद्धाओं का भय व्याप्त हो गया था । इस कारण अकबर की सेना मैदान छोड़कर भागने लगी । महाराणा प्रताप ने मुगल सेनाओं को दूर अजमेर तक खदेड़ दिया । अंत में अकबर की सेना ने घुटने टेक दिए । ऐतिहासिक तथ्यों के हिसाब से अकबर के 36 हजार से अधिक सैनिकों ने घुटने टेककर महाराणा प्रताप के आगे आत्मसमर्पण किया था ।

महाराणा प्रताप का मेवाड़ पर पुनः संपूर्ण आधिपत्य और देवलोकगमन

दिवेर युद्ध में मिली हार के बाद अकबर की शक्ति बहुत कम हो गई थी, दूसरी तरफ महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ और उदयपुर सहित चितौड़ पर भी वापस संपूर्ण अधिकार कर लिया था । अकबर की इस हार के कारण पूरे भारत में विद्रोह होने लगे थे, इस कारण अकबर भी मेवाड़ को अपने अधीन करने की मंशा मन में लिए दूसरे विद्रोह हो दबाने में व्यस्त हो गया । अब महाराणा प्रताप की शक्ति बहुत बढ़ गई थी । उन्होंने अपनी नई राजधानी भी बना ली थी, जिसका नाम चावंड था । चावंड में अपनी प्रजा की सेवा और परिवार के साथ सुखी जीवन व्यतीत किया । दिवेर युद्ध के कई वर्षो बाद 19 जनवरी 1597 को एक लंबी बीमारी के चलते मेवाड़ी शेर महाराणा प्रताप का देवलोकगमन हुआ । धन्य हैं वह मां जयवंता बाई जिनकी कोख से महाराणा प्रताप ने जन्म लिया ।

महाराणा प्रताप से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य | Historical Facts about Maharana Pratap in Hindi

  • महाराणा प्रताप का बचपन का नाम कीका था ।
  • ज्ञात तथ्यों के हिसाब से उनका वजन 110 किलों और लंबाई 7.4 फीट थी ।
  • जब महाराणा जंगलों ओर पहाड़ों में चले गए थे तब उनके साथ लोहा पीटने वाली जाति जो हथियार बनाती थी वह भी उनके साथ जंगलों में रही और दिन रात हथियार बनाए । आज इन्हीं लोगों को हम गाडियां लोहार के नाम से जानते हैं ।
  • उदयपुर संग्रहालय और ऐतिहासिक तथ्यों के हिसाब से महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो का था और छाती का कवच 72 किलो । जब वह युद्ध में जाते तब भाला, ढाल और दो तलवारों सही कवच का कुल वजन 208 किलोग्राम था ।
  • राणा उदयसिंह जी द्वारा शुरू की गई छापामार युद्ध पदत्ती को बाद में महाराणा प्रताप ने आगे बढ़ाया और कई वर्षो बाद उनके की वंशज छत्रपति शिवाजी महाराज ने छापामार कार्यवाही को आगे लेजाकर मुगलों के दांत खट्टे किए ।
  • वह अपने प्रिय घोड़े को युद्ध में ले जाते समय हाथी का मुकुट पहनाया करते थे, ताकि दुश्मन सेना के हाथी भ्रमित हो सके ।
  • Maharana Pratap के विषय में एक झूठ फैलाया गया की उनको घांस की रोटी खानी पड़ी थी । जबकि उनकी सेना में उस समय 15000 अश्व सैनिक और 20000 पैदल सैनिक थे । जिनकी खाने पीने की सभी सुविधाएं महाराणा उपलब्ध करवाते थे । अब बताओ क्या यह संभव है की इतना बड़ा कारवां रखने वाले महाराणा को घांस की रोटी खानी पड़े। आप खुद इसपर विचार करना ।
  • अकबर मेवाड़ की सेना के गोरिल्ला युद्ध से इतना परेशान हो गया था की रातों को नींद में भी उसे महाराणा प्रताप का आभास होने लगा था ।
  • मेवाड़ की भील जनजाति महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानती थी, मेवाड़ में भीलों को सम्मान और ऊंचा दर्जा प्राप्त था । आज भी मेवाड़ के राज चिन्ह में एक तरफ मेवाड़ी योद्धा और दूसरी ओर भील योद्धा अंकित हैं ।
  • आपने वीर चेतक का नाम तो सुना होगा । मगर महाराणा प्रताप के पास एक हाथी भी था जिसका नाम रामप्रसाद था । रामप्रसाद ने हल्दीघाटी युद्ध में अकबर के 40 हाथियों को अकेले मार गिराया था । जब अकबर ने रामप्रसाद को पकड़ लिया और बंदी बना लिया । तब 30 दिनों तक बिना खाए-पिए रामप्रसाद ने अपने प्राण त्याग दिए । तब अकबर बोला जिस मेवाड़ के एक हाथी को में ना झुका पाया वहां के राजा और प्रजा को झुकाना तो नामुमकिन हैं ।

FAQ’s महाराणा प्रताप से जुड़े सवाल-जवाब

Q1. महाराणा प्रताप का पूरा नाम क्या था?

Ans. मेवाड़ के सिसोदिया वंश में जन्मे महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था। बचपन में उनको कीका नाम से बुलाया जाता था।

Q2. मेराथन युद्ध किसे कहाँ जाता है?

Ans. महाराणा प्रताप और अकबर के मध्य दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मेराथन अथवा मेराथन युद्ध कहाँ जाता है।

Q3. अकबर के सेनापति सुल्तान खां को किसने मौत के घाट उतारा था?

Ans. Maharana Pratap के बेटे कुंवर अमरसिंह जी सिसोदिया ने दिवेर के युद्ध के दौरान अपने भाले से अकबर के सेनापति सुल्तान खां को मौत के घाट उतारा था।

Q4. अकबर ने महाराणा प्रताप के साथ संधि हेतु क्या प्रस्ताव भेजा था?

Ans. अकबर एक धूर्त और साम्राज्यवादी शासक था। उसने अपनी कूटनीति के तहत महाराणा को सन्देश भिजवाया की वह उसकी आधीनता स्वीकार कर ले और बदले में आधा हिन्दुस्तान ले ले। किन्तु स्वाभिमानी मेवाड़ी शेर महाराणा प्रताप ने अकबर का प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया की मरना मंजूर है, किन्तु मातृभूमि का सौदा नहीं करेंगे।

Q5. महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई?

Ans. दिवेर युद्ध में जितने के बाद महाराणा ने अपनी नई राजधानी चावण्ड से शासन शुरू किया था। किन्तु दिवेर युद्ध के कई वर्षो बाद एक बीमारी के कारण 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई।

Q6. महाराणा प्रताप की जयंती कब है?

Ans. अंग्रेजी महीने के हिसाब से महाराणा प्रताप की जयंती हर वर्ष 9 मई को आती है, और विक्रम संवत के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुल्क पक्ष की तृतीया को आती है।

निष्कर्ष

Maharana Pratap History in Hindi से जुड़े हमारे इस लेख से आपने आज बहुत कुछ जाना होगा मेवाड़ के वीर शिरोमणि योद्धा महाराणा प्रताप के विषय में । हमारी इस वेबसाइट Karni Times में हम ऐसे ही क्षत्रिय इतिहास से जुड़े लेख प्रकाशित करते रहते है । इसलिए आप वेबसाइट को Subscribe जरूर कर ले ताकि आने वाले सभी नवीनतम लेख आपको सबसे पहले पढ़ने को मिले ।

महाराणा प्रताप का इतिहास बहुत ही समृद्ध और विशाल है, हमने अपने इस लेख में कुछ बहुत महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला है पाठकों की रुचि को देखते हुए । अगर आपको Maharana Pratap Biography in Hindi पसंद आई है तो यह लेख अपने मित्रों तक जरुर share करे। धन्यवाद

Vijay Singh Rathore

मैं Vijay Singh Rathore, Karni Times Network का Founder हूँ। Education की बात करूँ तो मैंने MA तक की पढ़ाई की है । मुझे नयी नयी Technology से सम्बंधित चीज़ों को सीखना और दूसरों को सिखाने में बड़ा मज़ा आता है। 2015 से मैं ब्लॉगिंग कर रहा हूँ। खाली समय में मुझे किताबें पढना बहुत पसंद है। For Contact : vijaysingh@karnitimes.com

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