रानी बाघेली का इतिहास | Rani Bagheli History In Hindi | मारवाड़ की पन्ना धाय

रानी बाघेली । मारवाड़ कि पावन धरा ने सैकड़ो वीर योद्धा एवं वीरांगनायें इस भारतवर्ष को दी है, जिन्होंने अपने शौर्य और बलिदान से सदा सदा के लिए इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया । इस लेख के माध्यम से आज आपको ऐसी ही वीरांगना रानी बाघेली की कथा …

रानी बाघेली । मारवाड़ कि पावन धरा ने सैकड़ो वीर योद्धा एवं वीरांगनायें इस भारतवर्ष को दी है, जिन्होंने अपने शौर्य और बलिदान से सदा सदा के लिए इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया । इस लेख के माध्यम से आज आपको ऐसी ही वीरांगना रानी बाघेली की कथा सुनाने जा रहे है । जिनका बलिदान कही भी मेवाड़ की माता पन्नाधाय से कम ना था । आशा है आपको यह लेख और जानकारी पसन्द आवेगी :-

रानी बाघेली का परिचय | Rani Bagheli History

मारवाड़ रियासत के ठिकाने बलुन्दा के मोहकमसिंहजी की पत्नी थी वीरांगना रानी बाघेली । स्वभाव से सरल और देशभक्ति से ओतप्रोत थी रानी । इन्होंने जोधपुर के नवजात राजकुमार की औरंगजेब से रक्षा हेतु अपनी दूध पीती राजकुमारी का बलिदान दे दिया था । Rani Bagheli History.

रानी बाघेली का इतिहास  | Rani Bagheli History

औरंगजेब के तमाम षड्यंत्रो के पश्चयात भी इन्होंने जोधपुर के भावी महाराजा अजीतसिंह जी का लालन पोषण किया और अपना कर्तव्य पालन निभाया अपनी मातृभूमि हेतु ।

इनका बलिदान उतना ही महत्वपूर्ण है जितना मेवाड़ के वारिश को बचाने हेतु पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान दिया था । किंतु विडम्बना देखिए इस देश मे इतिहासकारों ने अपने साहित्य में रानी बाघेली को वह स्थान नही दिया जितना आज पन्नाधाय जी को मिला है । इसी कारण आज देश और विश्व रानी बाघेली जी के बलिदान से अनभिज्ञ है ।

रानी बाघेली का इतिहास

उस समय जोधपुर में महाराजा जसवंत सिंह जी का साम्राज्य था। जसवंत सिंह जी सैनिक अभियान से अफगानिस्तान गए हुवे थे। कई महीने गुजर चुके थे, जोधपुर अपने राजा के बिना ही समय गुजार रहा था। उधर ओरंगजेब की धूर्त नजरे भी जोधपुर पर टिकी थी की आखिर कैसे उसे अपने कब्जे में करे।

28 नवम्बर 1678 का दिन जोधपुर के लिए काला साबित हुवा, युद्ध में घायल होने और अपनी बीमारी की वजह से जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई। संयोग से इस समय जोधपुर की दोनों रानियाँ गर्ब से थी, इसलिए समय की नजाकत को देखते हुवे जोधपुर के परम विश्वासपात्र वीर दुर्गादास राठौड़ जी और जोधपुर के प्रमुख सामंतो ने रानियों को अपने महाराजा के साथ सति होने का धर्म निभाने से रोक लिया ताकि जोधपुर का भविष्य उज्ज्वल हो सके। दुर्गादास जी की चतुराई से दोनों रानियों को विश्वासी सैनिको के साथ सफलता पूर्वक लाहौर सुरक्षित पहुँचा दिया गया।

अजीतसिंह जी का जन्म

जब दोनों रानियों को लाहौर लाया गया था, उसके कुछ समय बाद जोधपुर की रानीयो के पुत्रों को जन्म दिया। सं 19 फरवरी 1679  को जोधपुर के बड़े राजकुमार को जन्म हुवा जिसका नाम अजीतसिंह पड़ा और कुछ समय बाद ही छोटे राजकुमार दलथंभन का जन्म हुवा । जोधपुर में खुशियां एक बार फिर दस्तक दे चुकी थी।

अजीतसिंह जोधपुर | रानी बाघेली का इतिहास | Rani Bagheli
अजीतसिंह जोधपुर

उधर औरंगजेब जोधपुर पर कब्ज़ा करने की पूरी तैयारी कर चूका था, तो जब जोधपुर से सभी सामंत रानियों और नवजात राजकुमारों को लेकर लाहौर से दिल्ली पहुँचे तो धूर्त औरंगजेब से पीछे से जोधपुर पर अधिकार कर लिया और अपनी कूटनीति से राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर का उत्तराधिकारी मानने से साफ मना कर दिया।

उधर औरंगजेब के इस षड़यंत्र को दुर्गासदास जी ने भांप लिया और अपने प्रमुख सामंतो मोकमसिंह जी और खींची मुकंदास के साथ मिलकर राजकुमार और रानियों को सुरक्षित मारवाड़ पहुँचाने की योजना बनाई। औरंगजेब को भी जोधपुर के सामन्तो की योजना की भनक लग गई थी, अतः उसने रानियों के महल में अपने सैनिको की चौकसी बढ़ा दी थी। ताकि कोई योजना सफल ना हो सके।

रानी बाघेली का बलिदान

औरंगजेब के कठोर पहरे में राजकुमार को किले से बहार निकलना बहुत काठी कार्य था। अब इसे ईश्वर की कृपा कहे या संयोग जब यह सारा प्रपंच दिल्ली में चल रहा था, उस समय मोहकमसिंहजी की पत्नी रानी बाघेली भी अपनी नवजात पुत्री के साथ दिल्ली में थी।

तब वीरांगना रानी बाघेली ने अपना राजधर्म निभाया और दिल्ली के बादशाह की नजरों के निचे से रानी के महल में राजकुमार अजीतसिंह को अपनी पुत्री से बदल दिया, और राजकुमार को अपनी बेटी के कपड़े पहनाकर दिल्ली के किले से सुरक्षित निकाल दिया।

यह कार्य इतना गोपनीय तरीके से किया गया की महल की दासियो तक को इस बात की भनक नहीं लगने दी की राजकुमार को बदल दिया गया है। यह बात सिर्फ दुर्गादास जी और मोकमसिंह जी के अलावा केवल रानी और सामंत मुकंदास जी के अलावा किसी को पता नहीं थी। राजकुमार को सुरक्षित बलुन्दा के किले में पहुंचा दिया था।

बलुन्दा में ही राजकुमारी के भेष में जोधपुर के राजकुमार अजीतसिंह जी पालन पोषण होने लगा। कहते है की 6 महीने तक किसी को पता नहीं लगा की बलुन्दा में जोधपुर का राजकुमार बड़ा हो रहा है। उधर दुर्गादास जी और मोकमसिंह जी ने बलुन्दा को राजकुमार की सुरक्षा में एक सुदृढ़ किले में बदल दिया था।

किन्तु कुछ समय बाद रानी बाघेली को लगा की अब किला राजकुमार की सुरक्षा में सही नहीं है। तब रानी ने किले से निकलने हेतु एक योजना बनाई और अपने पीहर जाने का बहाना बनाकर राजकुमार को किले से बाहर ले आई। रानी बाघेली ने अपने कुं हरिसिंह और खींची मुकंदास जी की सहायता से अपने एक विश्वास पात्र सिरोही रियासत के कालिंद्री गाँव के जयदेव ब्राह्मण को अजीतसिंह सोप दिया। उसी ब्राह्मण के घर अजीतसिंह बड़े हुवे और जोधपुर के राजा बने।

रानी बाघेली ने निभाया राजधर्म

जयदेव ब्राह्मण के घर राजकुमार को सौंप रानी ने अपना कर्तव्य निभाया। धन्य है वीरांगना रानी बाघेली और नमन हे उनके इस बलिदान को जिसमे अपनी नन्ही राजकुमारी से अजीतसिंह जी को बदलकर एक मिशाल पेश की। इतिहास में यह बलिदान कही भी माता पन्ना धाय से कम ना था। किन्तु इतिहासकारों ने रानी बाघेली जी के साथ उचित न्याय नहीं किया। सोचो अगर रानी का यह बलिदान ना होता तो आज मारवाड़ और जोधपुर का इतिहास क्या होता।

FAQ’s

रानी बाघेली कौन थी?

वीरांगना रानी बाघेली मारवाड़ रियासत के सामंत ठिकाने बलुन्दा के मोहकमसिंहजी की पत्नी थी, जिन्होंने अपनी नन्ही राजकुमारी से अजीतसिंह जी को बदलकर उनकी जान औरंगजेब की कूटनीति से बचाई थी, और मारवाड़ को उनका राजा दिया।

अजीतसिंह का जन्म कब हुवा था?

लाहौर में सं 19 फरवरी 1679 को जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह जी जन्म हुवा था।

मारवाड़ की पन्ना धाय किसे कहाँ जाता है?

बलुन्दा ठिकाने की रानी बाघेली को मारवाड़ की पन्ना धाय कहाँ जाता हे, क्योकि इन्होने राजकुमार अजीतसिंह जी को अपनी पुत्री बदलकर उनकी जान बचाई थी।

जोधपुर के राजा अजीतसिंह जी के भाई का क्या नाम था?

जोधपुर के महाराज अजीतसिंह जी के भाई का नाम राजकुमार दलथंभन था, दोनों भाइयों का जन्म लाहौर में हुवा था। राजकुमार दलथंभन जसंवतसिंह जी की दूसरी रानी के पुत्र थे।

निष्कर्ष – वीरांगना रानी बाघेली का त्याग | Rani Bagheli

आशा के आपको हमारा यह लेख रानी बाघेली का इतिहास पसंद आया होगा। हमारा नित्य यही प्रयास रहता है की राजपूत इतिहास पर लेख लिखते रहे। हमारा एकमात्र उद्देश्य पाठकों तक सत्यता की कैसोटी पर कसकर लेख लिखना है। अतः आप सभी हमारा साथ निभाते रहे।

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Vijay Singh Rathore

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