वीर कुंवर सिंह। भारत की आजादी में सैकड़ो वीरों और वीरांगनाओं का अहम योगदान था। हजारों वीरो ने अपने प्राणों का दान दिया था, अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति में, इन्हीं योद्धाओ में से एक थे बिहार के 80 साल के योद्धा बाबू वीर कुंवर सिंह जी। जिन्होंने अपनी आयु और ढलते शरीर की परवाह किये बगैर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया था। आज इस लेख लेख में उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी आप सभी से साझा कर रहे :-
वीर कुंवर सिंह का इतिहास
वर्षो की गुलामी और अँग्रेजी शासन की कुरर्ता उस समय अपने चरम पर थी, बात उन दिनों की हे जब भारत में चारों तरफ अंग्रेजी शासन फैला हुवा था, धीरे-धीरे अंग्रेजो की विरुद्ध आवाज बुलंद होने लगी थी, सभी राजा और प्रजा एकसाथ मिलकर विदेशी लुटेरों के खिलाफ एकजुट थे। इन्ही क्रांतिकारियों में एक नाम ऐसा भी था बाबू वीर कुंवर सिंह जिनकी उम्र उनके देखभक्ति के जज्बे को कम ना कर सकी थी , आइये जानते हे उस शेर दिल वीर योद्धा के जीवन और इतिहास में योगदान को …
बाबू वीर कुंवर सिंह जीवन परिचय
आज हम आपको बताना चाहते है बिहार के महान पुरुष वीर कुंवर सिंह के बारे में। जिन्होंने अपने तेज दिमाग और लड़ने की कुशल प्रतिभा के कारण अंग्रेजो को युद्ध के मैदान में कई बार पराजय का मुंह दिखाया।
वीर कुंवर सिंह को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक के रूप में जाना जाता है, जो 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने का माद्दा रखते थे। अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे। अपने ढलते उम्र और बिगड़ते सेहत के बावजूद भी उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि उनका डटकर सामना किया। वीर कुंवर सिंह जगदीशपुर के शाही उज्जैनिया राजपूत घराने से संबंध रखते थे।
वीर कुंवर सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों में से एक थे। इनके चरित्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यही थी कि इन्हें वीरता से परिपूर्ण कार्यों को करना ही रास आता था। इतिहास प्रसिद्ध 1857 की क्रांति में भी इन्होंने सम्मिलित होकर अपनी शौर्यता का प्रदर्शन किया। बाबू कुंवर सिंह ने रीवा के ज़मींदारों को एकत्र किया और उन्हें अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए तैयार किया।
नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और बेगम हजरत महल जैसे शूरवीरो ने अपने – अपने क्षेत्रो में अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध किया। बिहार में दानापुर के क्रांतकारियो ने भी 25 जुलाई सन 1857 को विद्रोह कर दिया और आरा पर अधिकार प्राप्त कर लिया। इन क्रांतकारियों का नेतृत्व कर रहे थे वीर कुँवर सिंह।
वीर कुंवर सिंह प्रारम्भिक जीवन और 1857 क्रांति में योगदान
बाबू वीर कुंवर सिंह का जन्म 13 नवम्बर 1777 को राजा शाहबजादा सिंह और रानी पंचरतन देवी के घर, बिहार राज्य के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के जगदीशपुर में हुआ था। वे उज्जैनिया राजपूत घराने से संबंध रखते थे। जो परमार समुदाय की ही एक शाखा थी। उन्होंने राजा फ़तेह नारियां सिंह (मेवारी के सिसोदिया राजपूत) की बेटी से शादी की, जो बिहार के गया जिले के एक समृद्ध ज़मीनदार और मेवाड़ के महाराणा प्रताप के वंशज भी थे।
1857 के सेपॉय विद्रोह में कुंवर सिंह सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। 1777 में जन्मे कुंवर सिंह की मृत्यु 1857 की क्रांति में हुई थी।
जब 1857 में भारत के सभी भागो में लोग ब्रिटिश अधिकारियो का विरोध कर रहे थे, तब बाबु कुंवर सिंह अपनी आयु के 80 साल पुरे कर चुके थे। इसी उम्र में वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लढे। लगातार गिरती हुई सेहत के बावजूद जब देश के लिए लढने का सन्देश आया।
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तब वीर कुंवर सिंह तुरंत उठ खड़े हुए और ब्रिटिश सेना के खिलाफ लढने के लिए चल पड़े, लढते समय उन्होंने अटूट साहस, धैर्य और हिम्मत का प्रदर्शन किया था।
बिहार में कुंवर सिंह ब्रिटिशो के खिलाफ हो रही लढाई के मुख्य कर्ता-धर्ता थे। 5 जुलाई को जिस भारतीय सेना ने दानापुर का विद्रोह किया था, उन्होंने ही उस सेना को आदेश दिया था। इसके दो दिन बाद ही उन्होंने जिले के हेडक्वार्टर पर कब्ज़ा कर लिया।
लेकिन ब्रिटिश सेना ने धोखे से अंत में बाबू वीर कुंवर सिंह की सेना को पराजित किया और जगदीशपुर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। इसके बाद दिसम्बर 1857 को कुंवर सिंह अपना गाँव छोड़कर लखनऊ चले गये थे।
मार्च 1858 में, उन्होंने आजमगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन जल्द ही उन्हें वो जगह पर छोडनी पड़ी। इसके बाद उन्हें ब्रिगेडियर डगलस ने अपनाया और उन्हें अपने घर बिहार वापिस भेज दिया गया।
वीर कुंवर का वीरगति को प्राप्त करना
इस समय बाबू वीर कुंवर सिंह की उम्र 80 वर्ष की हो चली थी। वे अब जगदीशपुर वापस आना चाहते थे। नदी पार करते समय अंग्रेज़ों की एक गोली उनकी ढाल को छेदकर बाएं हाथ की कलाई में लग गई थी। उन्होंने अपनी तलवार से कलाई काटकर नदी में प्रवाहित कर दी।
वे अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए और अंग्रेज़ी सेना को पराजित करके 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर पहुँचे। लोगों ने उनको सिंहासन पर बैठाया और राजा घोषित किया। परन्तु कटे हाथ में सेप्टिक हो जाने के कारण ‘1857 की क्रान्ति’ के इस महान नायक ने 26 अप्रैल, 1858 को अपने जीवन की इहलीला को विराम दे दिया।
बाबू वीर कुंवर सिंह जी से जुड़े रोचक तथ्य
- वीर कुंवर जी 80 साल की उम्र के थे, और इन्होने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को सैकड़ो बार युद्धों में पराजित किया था।
- बाबू वीर कुंवर सिंह जी जगदीशपुर के शाही उज्जैनिया राजपूत वंश के थे। उज्जैनिया वंश परमार राजपूत वंश की ही शाखा है।
- वीर कुंवर सिंह जी एक परम देशभक्त तो थे ही साथ में वह एक सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तित्व भी थे। उन्होंने आरा जिले में बनी स्कूल के लिए अपनी ज़मीन दान में दे दी थी। जिस पर स्कूल के भवन का निर्माण किया गया था । अंग्रेजी शासन के विरुद्ध नित्य अभियानों के कारण उनकी आर्थिक स्थिति बहुत मजूबत और अच्छी नहीं थी, फिर भी वे निर्धन और जरुरतमंदो की सहायता करते थे।
- उनके लिए अंग्रेजी सरकार ने कहाँ था की शुक्र है यह योद्धा 80 साल का था, अगर जवान होता तो हमें उस वक्त भारत छोड़ना पड़ता।
- क्रांति के दौरान जब वह गंगा नदी को पार कर रहे थी, तब पीछे से अंग्रेजो की एक गोली उनको हाथ में आकर लगी। इससे वह अत्यधिक घायल हो गए थे, गोली का जहर उनके शरीर में ना फैले इस वजह से वीर कुंवर सिंह जी ने अपना घायल हाथ काटकर नदी में फेक दिया था।
FAQ’s
वीर कुंवर सिंह जयंती कब है?
1857 की क्रांति के महानायक वीर कुंवर सिंह की जयंती 13 नवंबर को आती है। इनका जन्म 13 नवंबर 1777 को राजा शाहबजादा सिंह और रानी पंचरतन देवी के घर, बिहार राज्य के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के जगदीशपुर में एक परमार राजपूत वंश में हुवा था।
वीर कुंवर सिंह को कौन से युद्ध में महारत हासिल थी?
अंग्रेजो को सैकड़ो बार परास्त करने वाले बाबू वीर कुंवर सिंह जी को छापामार युद्ध में महारत हासिल थी। उन्होंने 1857 से स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो को छापामार युद्ध निति के तहत भारी क्षति पहुंचाई थी।
1857 के विद्रोह में वीर कुंवर सिंह का क्या योगदान रहा?
वीर कुंवर सिंह जी ने 1857 की क्रांति के दौरान दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ मिलकर आरा नगर पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने क्रांति में एक नई जान फूक दी थी। सभी को लगा की जब एक 80 साल का योद्धा अंग्रेजो को धूल चटा सकता है तो वह सब तो अंग्रजों को भारत से खदेड़ देंगे।
वीर कुंवर सिंह की मृत्यु कैसे हुई थी?
अंग्रेजों से लोहा लेते वक्त जब वह गंगा नदी पार कर रहे थे, तब उनके हाथ में गोली लग गई थी। तब उन्होंने वह काट कर फेक दिया था, किन्तु काफी समय बाद भी उनका वह घाव ठीक नहीं हुवा था और हाथ में संक्रमण होने की वजह से 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गई थी।
निष्कर्ष – बाबू वीर कुंवर सिंह का इतिहास
आशा हे आपको वीर कुंवर सिंह जी के विषय में लिखा यह लेख पसंद आया होगा। 1857 की क्रांति के इस महान सेनानायक Veer Kunwar Singh जी के योगदान को भारत कभी भूल नहीं पाएगा। अगर आपको ऐसे ही राजपूत योद्धाओं का इतिहास पसंद है तो हमारी Website करणी टाइम्स को जरूर follow करे।
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