हम्मीर देव चौहान। राजस्थान वीरों की जन्मभूमि रहा है, यहाँ अपनी मातृभूमि पर अपना सबकुछ लुटा देने वाले वीरों और वीरांगनाओ की गौरवगाथाओं से इतिहास भरा पड़ा है। आज हम आपको इस लेख में एक ऐसे ही वीर योद्धा Hammir Dev Chauhan की गौरवशाली गाथा को बताने जा रहे है, जिनके हठ और पराक्रम के आगे समस्त भारतवर्ष के राजा और सुल्तानों ने हार मान ली थी।
हम्मीर देव चौहान का इतिहास
हठी हम्मीर देव चौहान राजस्थान के रणथम्भोर रियासत के शासक थे। इनका जन्म 7 जुलाई 1272 को चौहान वंश के राव जेत्रसिंह के तीसरे पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन से ही हम्मीर देव चतुर और निडर थे। उन्होंने सभी शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की थी, और घुड़सवारी के साथ तलवार चलाने में विशेष महारत हासिल की थी। जिसकी वीरता के चर्चे दूर-दूर तक फैले थे दुश्मन जिनके नाम से थर-थर कांपते थे | तो चलिये अब हम आपको विस्तार पूर्वक उस वीर के विषय में सम्पूर्ण जानकारी देते हैं।
सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार, तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़ै न दूजी बार...
अर्थात सिंह एक ही बार संतान को जन्म देता है, सज्जन लोग बात को एक ही बार कहते हैं । केला एक ही बार फलता है, स्त्री को एक ही बार तेल एवं उबटन लगाया जाता है, अर्थात उसका विवाह एक ही बार होता है। ऐसे ही राव हम्मीर देव चौहान का हठ है। वह जो ठानते हैं, उस पर दोबारा विचार नहीं करते।
हम्मीर देव चौहान मेवाड़ के परमप्रतापी शासक थे, जिन्होंने समस्त भारत में दिग्विजय अभियान चलाया था, और इसी अभियान में उन्होंने अल्लाउदीन खिलजी को तीन बार युद्ध में पराजित किया और उसे अपनी जेल में कैद कर दिया था। उनकी वीरता और निर्णय लेने का जो साहस था वह उसे सही से पूर्ण करते थे। इतिहास में उन्हें यु ही हठी हम्मीर देव चौहान नहीं कहते है।
हम्मीर देव चौहान परिचय – Hammir Dev Chauhan
मेवाड़ के अंतिम चौहान शासक थे वीर योद्धा हठी हम्मीर देव चौहान। राव हम्मीर देव चौहान का जन्म सात जुलाई, 1272 को चौहानवंशी राव जैत्रसिंह के तीसरे पुत्र के रूप में अरावली पर्वतमालाओं के मध्य बने रणथम्भौर दुर्ग में हुआ था। बालक हम्मीर देव इतना वीर था कि तलवार के एक ही वार से मदमस्त हाथी का सिर काट देता था।
उसके मुक्के के प्रहार से बिलबिला कर ऊंट धरती पर लेट जाता था। इस वीरता से प्रभावित होकर राजा जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में ही 16 दिसम्बर, 1282 को उनका राज्याभिषेक कर दिया। राव हमीर ने अपने शौर्य एवं पराक्रम से चौहान वंश की रणथम्भौर तक सिमटी सीमाओं को कोटा, बूंदी, मालवा तथा ढूंढाढ तक विस्तृत किया। हम्मीर देव चौहान ने अपने जीवन में 17 युद्ध लड़े, जिसमें से 16 में उन्हें सफलता मिली। 17वां युद्ध उनके विजय अभियान का अंग नहीं था।
हम्मीर देव चौहान ने गद्दी सभालते ही सबसे पहले भामरस के राजा अर्जुन को हराया, और फिर दक्षिण में परमार शाशक भोज को हराया और फिर बहुत सारी विजयो के उपरांत वह रणथंभोर गया और नो कोटि का यज्ञ कराया। थोड़े समय के उपरांत ही हम्मीर देव ने अपना राज्य शिवपुरी(ग्वालियर),बलबन(कोटा),और शाकम्भरी तक कर लिया।
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अल्लाउदीन खिलजी और हम्मीर देव चौहान का युद्ध
Hammir Dev Chauhan एक कुशल शासक होने के साथ बहुत ही शक्तिशाली योद्धा भी थे, यह कहना अनुचित ना होगा की वह अपने समय के सबसे शक्तिशाली योद्धा थे। उनकी बढ़ती शक्ति को देखकर सभी भयभीत थे। हम्मीर देव ने अपने राज्य की सीमा को मेवाड़ से बढाकर दूर गुजरात और उत्तर में दिल्ली की सीमाओं तक फैला दिया था।
उस वक्त 1296AD में अलाउद्दीन दिल्ली की गद्दी पर बेठा था। अलाउदीन ने 1299 में गुजरात पर आक्रमण किया था और वहाँ से विजय के बाद वापस लोट रही मुस्लिम सेना ने माल बटवारे को लेकर झगड़ा हो गया और सेना में शामिल मंगोल सैनिको ने विद्रोह कर दिया। जिसमे मुख्य नेता ‘मुहम्मदसाह व् केबरू’ थे, जो इस विद्रोह के अलाउद्दीन सेनापत्यो के दमन के बाद ये Hammir Dev Chauhan की शरण में चले गए।
जब अलाउद्दीन ने हम्मीर देव चौहान से इन्हें वापस लौटाने को कहा तो हम्मीर ने मना कर दिया, जिस कारण अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभोर पर आक्रमण करने का मन क्रर लिया। 1299AD में अलाउद्दीन खिलजी ने नुसरत ख़ाँ अलप खा और उलगु खा के नेतृत्व में एक बड़ी सेना रणथंभोर पर आक्रमण हेतु भेजी।
परंतु नुसरत खा किले से आने वाले गोले के कारण मारा गया और हम्मीर देव चौहान ने भीमसिंह व् धर्मसिंह के नेतृत्व में तुर्को का सामना करने के लिए सेना भेजी, जिसमे तुर्को की पराजय हुई और तुर्कों को जान बचाकर भागना पड़ा |
Hammir Dev Chauhan history in hindi
इस हार के कारण अलाउद्दीन खिलजी स्वं एक विशाल सेना लेकर रणथम्भोर आ गया था, परंतु एक साल तक दुर्ग की घेराबंदी के बावजूद भी उसको कुछ हासिल नही हुआ। तब अलाउद्दीन खिलजी ने छल से संधि का प्रस्ताव भेजा जिसको Hammir Dev Chauhan ने भाप लिया और दोनों सेनाओ के बिच घमासान युद्ध हुवा जिसमे खिलजी को हार माननी पड़ी और तुर्कों हौसले पस्त हो गए |
बादशाह खिलजी को हम्मीर देव चौहान ने हराने के बाद तीन माह तक जेल में बंद रखा । कुछ समय बाद खिलजी ने दोबारा रणथम्भोर पर आक्रमण किया अब की बार खिलजी की सेना बहुत ज्यादा विशाल थी | मुस्लिम सेना ने रणथम्भोर किले का घेरा कडा करते हुए आक्रमण किया था। लेकिन दुर्ग रक्षक उन पर पत्थरों, बाणों की बौछार करते, जिससे उनकी सेना का काफी नुकसान होता था। मुस्लिम सेना का इस तरह घेरा बहुत दिनों तक चलता रहा। लेकिन उनका रणथम्भौर पर अधिकार नहीं हो सका।
हम्मीर देव चौहान का शाका करना
दुर्ग का धेरा बहुत दिनों से चल रहा था, जिससे दूर्ग में रसद आदि की कमी हो गई। दुर्ग वालों ने अब अन्तिम निर्णायक युद्ध का विचार किया। राजपूतों ने केशरिया वस्त्र धारण करके शाका किया। राजपूत सेना ने दुर्ग के दरवाजे खोल दिए। भीषण युद्ध करना प्रारम्भ किया। दोनों पक्षों में आमने-सामने का युद्ध था। एक ओर संख्या बल में बहुत कम राजपूत थे तो दूसरी ओर सुल्तान की कई गुणा बडी सेना, जिनके पास पर्येति युद्धादि सामग्री एवं रसद थी।
राजपूतों के पराक्रम के सामने मुसलमान सैनिक टिक नहीं सके वे भाग छूटे भागते हुए मुसलमान सैनिको के झण्डे राजपूतों ने छीन लिए व वापस राजपूत सेना दुर्ग की ओर लौट पड़ी। दुर्ग पर से रानियों ने मुसलमानों के झण्डो को दुर्गे की ओर आते देखकर समझा की राजपूत हार गए अतः उन्होंने जोहर कर अपने आपको अग्नि को समर्पित कर दिया।
किले में प्रवेश करने पर जौहर की लपटों को देखकर हम्मीर देव चौहान को अपनी भूल का ज्ञान हुआ। उसने प्रायश्चित करने हेतु किले में स्थित शिव मन्दिर पर अपना मस्तक काट कर शंकर भगवान के शिवलिंग पर चढा दिया। अलाउद्दीन को जब इस घटना का पता चला तो उसने लौट कर दुर्ग पर कब्जा कर लिया।
FAQ’s
रणथंबोर में चौहान वंश की स्थापना कब हुई?
रणथम्भौर में चौहान वंश की स्थापना 1194 ई. में पृथ्वीराज तृतीय के पुत्र गोविन्दराज ने की थी।
हम्मीर देव चौहान राजगद्दी पर कब बैठा?
रणथम्भौर की राजगद्दी पर हम्मीर देव चौहान रविवार को माघ मास में विक्रम संवत 1339 को राजगद्दी पर बैठा था। वह पिता जैत्रसिंह के तीसरे पुत्र थे, किन्तु बहुत शक्तिशाली और बुद्धिमान योद्धा थे। इसलिए उनको रणथम्भौर का शासक बनाया गया।
अल्लाउदीन को हम्मीर देव चौहान ने कितने दिन कैद में रखा था?
दिल्ली के सुल्तान अल्लाउदीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया और हार दिखने के कारण उसने हम्मीर देव चौहान को संधि करने का प्रस्ताव भेजा। Hammir Dev Chauhan उसके छल को भांप गए और दोनों सेनाओ के मध्य भयंकर युद्ध हुवा। इस युद्ध में हम्मीर देव चौहान ने अल्लाउदीन खिलजी को तीन माह अपनी जेल में कैद रखा।
हम्मीर देव चौहान की पुत्री का नाम क्या था?
हम्मीर देव चौहान की पुत्री का नाम देवल दे था
निष्कर्ष : हम्मीर देव चौहान – Hammir Dev Chauhan History
हम्मीर देव चौहान का हठ उसकी निडरता का प्रतीक रहा है। Hammir Dev Chauhan ने स्वतंत्र शासन को अपना अभिमान समझा था |Hammir Dev Chauhan history in hindi पर ऐतिहासिक जानकारी काफी विस्तृत है। हमने अपने इस पोस्ट में मुख्य पहलुओं पर ही जानकारी दी है। फिर भी कोई महत्वपूर्ण जानकारी छूट गयी है तो हम उसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं।
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