ठाकुर का कुआं यह शब्द या कविता तो आप सबने आजकल सुनी ही होगी? जी हां वही कविता जो आजकल ट्रेन्ड में चल रही है । कुछ दिन पहले मनोज झा ने भी सदन में इस कविता के माध्यम से अपनी छोटी मानसिकता को दर्शाया था ।
दरसल यह कविता “ठाकुर का कुआं” ओम प्रकाश वाल्मीकि ने 1981 में लिखी थी, वह दलित साहित्यकार थे । उनकी यह कविता लिखने के पीछे क्या मंशा थी, वह तो वाल्मीकि ही बता सकते थे। किंतु मनोज झा ने जो सदन में कहां उसके पीछे तो साफ-साफ उनकी कुंठा दिखाई दे रही है ठाकुरों के प्रति । आज के इस लेख में हम इसी Thakur Ka Kuan कविता पर थोड़ी चर्चा करेंगे और जानेंगे की क्या सही में ठाकुरों ने इतने अत्याचार किए थे या फिर यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत ठाकुरों के प्रति नफरत फैलाने के लिए रचा गया षड्यंत्र है?
ठाकुर शब्द का अर्थ क्या है?
भारत जैसे विशाल देश में सैकड़ों बोलिया और भाषाएं बोली जाती है, इसलिए शब्दों का अर्थ भी स्थान के साथ बदलता रहता है । किंतु आम भाषा में जाने तो भारत में “ठाकुर” शब्द का प्रयोग दो रूपों में होता है, पहला राजपूतों के लिए और दूसरा भगवान श्री कृष्ण के लिए । गांवो शहरों में भी प्राय बोलते है ठाकुर जी के मंदिर जा रहे है ।
अब ओम प्रकाश वाल्मीकि द्वारा लिखित कविता “ठाकुर का कुआं” में ठाकुर “भगवान श्री कृष्ण” है या ठाकुर यानी राजपूत है, इसका भी जवाब कवि ही दे सकता है, किंतु जहां तक पूरी कविता पढ़ने के बाद समझ आया कवि कविता में ‘ठाकुर’ शब्द का प्रयोग समस्त संसार के पालनहार भगवान श्री कृष्ण को संबोधित कर रहे है।
ठाकुर का कुआं कविता का उत्तर यह | Thakur Ka Kuan
अब कविता के लेखक की क्या मंशा रही होगी उसका तो जवाब मिलना मुस्किल है, किंतु यदा कदा कुछ बरसाती मेंढक “ठाकुर का कुआं” कविता को अनेक मंचो पर पढ़कर राजपूतों को बेवजह निशाना बनाते रहते है, इसलिए आज हम जानेंगे Thakur Ka Kuan और ठाकुरों के द्वारा किए गए कार्यों के बारे में:-
चूल्हा मिट्टी का, मिट्टी तालाब की, तालाब ठाकुर का
चूल्हा बनाने के लिए मिट्टी तालाब से ही आती है, क्योंकि की तालाब की मिट्टी चिकनी और काली होती है, जो सूखने और पकने पर कठोर हो जाती है । फिर जल्दी से टूटती नही, और रही बात तालाब ठाकुर का तो यह भी सर्वविदित है की कालांतर में जब राजतंत्र था । तब ठाकुरों ने अपनी प्रजा के हित स्वरूप अनेकों निर्माण करवाए थे, जैसे कुआं, तालाब, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि।
यह सभी निर्माण राजा या ठाकुर अपनी प्रजा के हित और सुविधाओ के लिए करवाते थे, जिनका प्रयोग समस्त गांव वाले करते थे । गांवो से गुजरने वाले यात्री करते थे, रात्रि विश्राम के लिए धर्मशालाओं में रुकते थे । आप यह भी जान लो कि इन धर्मशालाओं में रुकने के कोई भी रुपए या अन्य धन नही वसूला जाता था, आजकल तो 1 घंटे भी बिना पैसे दिए आप किसी सराय या होटल में रुककर दिखाए ।
क्या ठाकुर सच में जुल्मी थे?
भारत की आजादी के बाद इतिहास को जितना तोड़ा-मरोड़ा गया है, उतना शायद कभी नही किया हो। जब भारत आजाद हुआ तब चुनाव हुए और इन चुनाओ में भी राजा महाराजाओं ने बहुत जगह भारी संख्या में जीत अर्ज की थी, तब सरकारों और तथाकथित वामपंथियों में भय व्याप्त हो गया की जनता में मन में राजाओं के प्रति प्यार अभी भी कम नहीं हो रहा है, तब ठाकुरों की छवि खराब करने के लिए फिल्मों का सहारा लिया गया।
60 से 80 के दशक तक हर नई फिल्मों में ठाकुरों को गांव वालों पर जुल्म करते दिखाया गया, ठाकुर जनता पर अत्याचार करता है यह दिखाया गया मतलब कोई कसर नहीं छोड़ी ठाकुरों की छवि खराब करने की ।
जबकि सत्य तो यह है की राजतंत्र के समय प्रजा के हित और रक्षा के लिए सदैव ठाकुर ही मरे है और लड़े है, उदाहरण से इतिहास भरा पड़ा है । किंतु सही इतिहास कोई पढ़ना ही नही चाहता, आजकल सब टीवी और मोबाइल से ही इतिहास के ज्ञाता बन जाते है, और फिर कोसने लग जाते है ठाकुरों को।
आखिर किया क्या है ठाकुरों ने देश के लिए?
अब इसका भी जवाब देने की जरूरत आन पड़ी है, मतलब हद है। जिस देश को सम्पूर्ण ही बनाया है ठाकुरों ने आज उन्ही से पूछते है की क्या किया है ठाकुरों ने?
तो सुनो कान खोलकर : जब विदेशों से लुटेरे भारत को लूटने के उद्देश्य से आते थे, तब ठाकुरों ने उनसे लड़ाइयां लड़ी थी और देश को बचाया था । राजपूत सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार ने लगभग 40 युद्ध किए थे, और अरबों को भारत में घुसने से रोक रखा था, मेवाड़ के बप्पा रावल ने मुगलों को गजनी से भी आगे तक खदेड़ दिया था और वापस लौटते समय जगह-जगह सैनिक चौकियों का निर्माण कर दिया था ताकि वापस कोई आक्रमण ना कर सके ।
कहते है की बप्पा रावल के भय से 400 वर्षो तक भारत पर कोई विदेशी आक्रमण नही हुआ था । भाटी ठाकुरों को उत्तर भट किवाड़ कहां जाता है, यानी उत्तर भारत की सीमा के प्रहरी । यह उपाधि उनको ऐसे ही नही मिली है, भाटी योद्धाओं ने अपने सर कटाए है किंतु उत्तर भारत से विदेशियों को अपनी अंतिम स्वास तक घुसने नही दिया था ।
रण खेती रजपूत री,कबहू न पीठ धरेह ।
देश रुखाले आपणे, दुखिया पीड़ हरे ।।
जिस मुंह से मनोज झा ने ठाकुरों के प्रति जहर उगला था, वह कभी का आसमानी आवाज में बदल जाता, जब बादशाह औरंगजेब ने सम्पूर्ण इस्लाम कि नीति अपनाई थी और सम्पूर्ण भारत में धर्म परिवर्तन करवा रहा था जबरदस्ती, वह ठाकुर वीर दुर्गादास राठौड़ ही था जिसने उसकी इस मंशा को धूल में मिला दिया था । ऐसे उदाहरण मैं सैकड़ो दे सकता हूं आपको । Thakur Ka Kuan
जब एक ठाकुर राजा ने प्रजा की प्यास बुझाने हेतु रेगिस्तान में नदी बहा दी थी
ठाकुर का कुआं तो बाद में सोचना पहले यह जान लो की जब राजस्थान में 1899 से 1900 ( विक्रम संवत 1956 ) में प्रसिद्ध छ्प्पनियाँ काल पड़ा था, उस वक्त बीकानेर जैसे सूखे प्रदेश में जनता पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस गई थी, तब तत्कालीन महाराजा गंगासिंह जी ने पंजाब में सतलज नदी से बीकानेर तक गंगनहर का निर्माण स्वं के राजकोष से करवाया था, और बीकानेर जैसे रेगिस्तान में पानी की समस्या का निदान दिया था, इसलिए महाराजा गंगासिंह जी को “कलयुग के भागीरथ” भी कहाँ जाता है।
जब एक 80 साल के ठाकुर ने अंग्रेजो को नाको चने चबवाए थे
लोगो ने ठाकुर का कुआं तो जान लिया किन्तु अब बिहार के ठाकुर बाबू वीर कुंवर सिंह जी के विषय में भी थोडा जान लो, 1857 की क्रांति में अंग्रेजो को कई बार हार का मुह दिखाया था। उनकी उम्र 80 वर्ष थी किन्तु घोड़े पर बैठकर युद्ध करते वीर कुंवरसिंह अंग्रेजो के काल साबित हो रहे थे। उस वक्त अंग्रेजी सरकार से कहाँ था शुक्र है बाबू वीरकुंवर सिंह 80 साल के थे, अगर वह जवान होते तो अग्रेजो को उसी वक्त भारत छोड़कर जाना पड़ता।
निष्कर्ष
ठाकुर का कुआं पर बहस करने वालो को भारत का इतिहास जवाब दे ही देता है, भारत निर्माण के लिए जब ठाकुरों ने अपनी 565 रियासते दान में दे दी थी ताकि भारत एक देश बन सके। इन रियासतों में 3000 से भी अधिक किले और गढ़ निर्मित थे, जो सरकारों के अधीन आ गए और आज भी उन किलों की वजह से भारत में पर्यटन से लाखो करोड़ो रुपयों की आमदनी होती है, और लाखो लोगो को रोजगार मिलता है। Thakur ka Kuan तो जान लिया लोगो ने पर ना जान पाए ठकुराई……जय ठाकुर जी की ।