शाका । कालान्तर में भारतवर्ष की सभी रियासतों में परस्पर आपस मे युद्ध होते थे । यह युद्ध या तो अपनी सीमा विस्तार के लिए होते थे, या फिर अपने पड़ोसी से भय के कारण की कही वह उसका राज्य ना हड़प ले । भारत मे सबसे अधिक युद्ध राजपूताना में हुवे थे, क्योकि यहाँ क्षत्रियों का राज था और सभी स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रेमी थे ।
आज इस लेख में आपको इन्ही युद्ध मे होने वाले शाकों के विषय मे जानकारी देने जा रहे है, जो राजपूत योद्धा युद्ध के दौरान किया करते थे ।
शाका किसे कहते है?
जब राज्य में युद्ध कई महीनों तक चलता था, और राजा और रानियां एवं प्रजा किले में चारों तरफ से घिर जाती थी । तब युद्ध विजय के आसार कम लगते थे । तब क्षत्रिय आखिरी युद्ध लड़ने को प्रण करते थे, इस युद्ध मे किले के अंदर की सभी महिलाएं अग्नि स्नान यानी जौहर करती थी ।
अपनी रानियों को जौहर स्नान करते देख सभी सैनिक ओर राजा केसरिया बाना धारण करके शाके करने निकल जाते थे । जब युद्ध मे सभी योद्धा केसरिया वस्र धारण कर वीरगति प्राप्त होने तक अपने दुश्मन का सम्पूर्ण विनाश करते है उसे शाका कहते है ।
राजस्थान के प्रसिद्ध शाके
इतिहास में सबसे अधिक शाके राजस्थान की वीरभूमि में हुवे है । एक बात सभी को जाननी आवश्यक है कि जौहर और शाका एकसाथ होते थे । किले के अंदर रानियां जौहर करती थी एवं युद्ध मे राजा और सैनिक योद्धा शाके करते थे । राजस्थान के कुछ प्रसिद्ध शाके इस प्रकार है :-
चितौड़गढ़ के प्रसिद्ध शाके
इतिहास के अनुसार सबसे ज्यादा शाके चितौड़ में हुवे है । चितौड़ में तीन शाका हुवे है जो इस प्रकार है :-
- चितौड़ का प्रथम शाका सं 1303 को रावल रतनसिंह ओर अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुवे भीषण युद्ध मे हुवा था । इसी अंतिम युद्ध मे किले में महारानी सति पद्मावती के साथ 16000 हजार अन्य वीरांगनाओ ने जौहर किया था ।
- चितौड़ का द्वितीय शाका सं 1543 में मेवाड़ के राणा विक्रमादित्य और तत्कालीन गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के मध्य हुवे युद्ध मे हुवा था । इस युद्ध मे भी किले में मौजूद रानी कर्मावती ने कई स्त्रियों के साथ मिलकर अग्नि स्नान यानी जौहर किया था ।
- चितौड़ का तृतीय शाका सं 1567 में तत्कालीन राणा उदयसिंह जी के राज में अपना साम्राज्य विस्तार की नीति को लेकर मेवाड़ आये अकबर के आक्रमण के समय हुवा था । इस युद्ध मे जयमल जी और पत्ता जी ने चितोड़ की अगुवाई की थी । अकबर के खिलाफ मेवाड़ ने भयंकर युद्ध किया और जयमल और पत्ता जी ने सेना के साथ शाका किया और किले के अंदर स्त्रियों ने अग्नि स्नान कर जौहर किया था ।
रणथम्भौर का शाका
वीरों की भूमि राजस्थान का प्रथम शाका रणथम्भौर में हुवा था । जब रणथम्भौर में हठी हम्मीरदेव चौहान का शासन था, उस समय उनकी कीर्ति समस्त भारतवर्ष में फैली थी । इसी कारण अल्लाउद्दीन खिलजी ने 1301 में आक्रमण किया था । इस युद्ध मे हम्मीरदेव चौहान की सेना की विजय हुई थी, और अल्लाउद्दीन की सेना रणक्षेत्र छोड़कर भाग गई थी ।
हम्मीरदेव की सेना ने खिलजी की सेना से उनके ध्वज छिन लिए ओर उन ध्वजों को हवा में उछालते हुवे किले की तरफ बढ़ रहे थे । वापस लौटती सेना के पास खिलजी के ध्वज देखकर किले के अंदर रानियों को लगा उनकी हार हुई है, इसलिए रानी रंगदेवी ने स्त्रियों के साथ मिलकर जौहर कर लिया । इस भूल का अहसास जब हम्मीरदेव चौहान को हुवा था, तब बीच रास्ते वापस लौटकर हम्मीरदेव और बाकी राजपूत योद्धाओ ने केसरीया बाना धारण कर शाका किया ।
जैसलमेर के प्रसिद्ध ढाई शाके
- जैसलमेर का प्रथम शाका लगभग 1313 के करीब हुवा था । उस समय दिल्ली के शासक खिलजी ने जैसलमेर पर धावा बोल दिया था । तब जैसलमेर के रावल मूलराज भाटी एवं कुंवर रतन सिंह जी ने केसरिया पहन शाका किया था एवं किले में रानी के साथ मिलकर सैकड़ो स्त्रियों ने जौहर स्नान किया ।
- जैसलमेर का द्वितीय शाका तब हुवा था जब वहां रावल दूदा जी का शासनकाल था । तब फिरोजशाह तुगलक के साथ जैसलमेर का भीषण युद्ध हुवा । अंतिम वार क्षत्रिय सेना ने शाका करके किया और स्त्रियों ने अपनी मान रक्षा हेतु जौहर किया ।
- जैसलमेर का तृतीय शाका ( अर्ध शाका ) सं 1550 में रावल लूणकरण भाटी के शासनकाल में हुवा था । इस युद्ध मे जब कंधार के शासक अमीर अली ने जैसलमेर पर आक्रमण किया तो राजपूतों ने भयंकर युद्ध कौशल का परिचय दिया । सभी क्षत्रिय वीरों ने केसरिया बाना धारण कर शाका किया, किन्तु किसी कारणवश किले में गलत सूचना गई कि उनकी विजय हुई है, इसलिए रानियों ओर बाकी स्त्रियों ने जौहर नही किया । अतः इसे अर्ध शाका कहते है ।
गागरोण के प्रसिद्ध शाके
इतिहास में मौजूद तथ्यों के हिसाब से गागरोण में दो शाकों का उल्लेख मिलता है । जिनका उल्लेख इस प्रकार है :-
- गागरोण का पहला शाका हुवा तब वहाँ वीर योद्धा अचलदास खींची का शासनकाल था, तब लगभग 1422 ई. में मांडू के सुल्तान अलपखां ने गागरोण पर आक्रमण किया । इस युद्ध मे सुल्तान की सेना बहुत विशाल थी, और गागरोण के विजय आसार कम थे । दोनो सेनाओ में भयंकर युद्ध हुवा था । कई महीनों तक चले इस युद्ध मे राजपूतों ने कड़ी टक्कर दी और अंतिम प्रयास में सभी वीरों ने अचलदास के साथ मिलकर शाका किया एवं किले में रानियों ने जौहर स्नान का गौरव प्राप्त किया ।
- गागरोण का दूसरा शाका भी मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी ( अलपखां का वंशज ) की वजह से हुवा था । पहले युद्ध मे राजपूतो की कड़ी टक्कर से बौखलाए मांडू के सुल्तान ने 1444 ईस्वी में गागरोण पर आक्रमण किया । इस युद्ध मे फिर राजपूतो ने केसरिया बाना धारण कर भयंकर युद्ध करते हुवे शाका किया था, ओर स्त्रियों ने जौहर स्नान कर अपने कुल का गौरव बढ़ाया था ।
जालोर का शाका
जब गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटकर अल्लाउद्दीन खिलजी वापस लौट रहा था, तब उसकी सेना को मध्य में रोककर जालोर नरेश कान्हड़ देव चौहान ने भयंकर युद्ध किया । इस युद्ध मे खिलजी को युद्ध छोड़कर भागना पड़ा । इसके परिणाम स्वरूप खिलजी ने दिल्ली जाकर अपनी सेना को संघठित किया एवमं वापस आकर जालोर पर आक्रमण किया । इस युद्ध मे कान्हड़ देव चौहान ने अपने बेटे वीर वीरमदेव चौहान को राजगद्दी सौपकर बाकी वीरों के साथ शाका किया था ।
FAQ’s
भारत का प्रथम शाका कब हुवा था?
भारत का प्रथम शाका सं 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी और रणथम्भौर के शासक हठी हम्मीर देव चौहान के मध्य हुवा था । इस युद्ध मे अल्लाउदीन युद्ध छोड़कर भाग गया था ।
चितौड़गढ़ में कुल कितने शाके हुवे थे?
चितौड़गढ़ के कुल तीन शाके क्रमशः 1303, 1543 ओर 1567 सं में हुवे थे ।
वीरमदेव चौहान ने शाका क्यो किया था?
जब अल्लाउदीन ने अपनी बेटी का रिश्ता जालोर के वीरमदेव चौहान को भेजा था, तब वीरमदेव ने कहाँ की अपने कुल की लाज रखने हेतु वीरगति को प्राप्त होना मंजूर है किंतु किसी तुर्कनी से विवाह मंजूर नही । उनके इस फैसले से भयंकर युद्ध हुआ और वीरमदेव ने अंतिम स्वास तक युद्ध करके शाका किया ।
बुन्देलखण्ड में जौहर और शाका कब हुवा था?
सं 1634 में औरंगजेब ने अपनी इस्लामिक साम्राज्य नीति के तहत बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किया था, तब वहां के शासकों ने औरंगजेब के विरुद्ध भयंकर युद्ध किया और सभी अंतिम घड़ी तक लड़े ओर शाका किया एवं राज्य की स्त्रियों ने जौहर पान किया ।
निष्कर्ष : शाका परिचय और इतिहास
भारत के इस गौरवशाली इतिहास में आज आपने शाका क्या होता है यह जाना । आशा है आपको यह जानकारी पसन्द आई होगी । हमारी इस वेबसाइट karni Times पर राजपूत संस्कृति से जुड़ी ऐसी ही रोचक जानकारियां उपलब्ध करवाई जाती है, इसलिए इस लेख को साझा जरूर करे ।
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