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राजकुमारी रत्नावती की शौर्यगाथा | 3 Exclusive History Facts | Rajkumari Ratnawati

Published on: 22/04/2023
राजकुमारी रत्नावती का इतिहास

राजकुमारी रत्नावती। सदियों से भारत देश का  इतिहास स्वर्णिम रहा है जहाँ हमारे देश को “सोने की चिड़िया” कहा जाता था। वही इस देश के दामन पर दाग लगाने और इस भूमि पर अपना कब्ज़ा करने के उद्देश्य से ब्रिटिश से लेकर विदेशी लुटेरों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

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जहाँ उन ताकतवर हमलावरों ने देश के कई राज्यों पर आक्रमण कर उनपर अपनी हुकूमत की, तो देश में कुछ महाराजा-महारानी ऐसे भी थे जिन्होंने उनके शासन के खिलाफ जंग छेड़ दी। इन विदेशी हमलावरों के खिलाफ आवाज़ उठाने वालो में सिर्फ देश के राजा-महाराजा ही नहीं बल्कि देश की वीरांगनाए  भी आती थी। जिन्होंने अपने पराक्रम से विदेशी हमलावरों के दांत खट्टे करे। 

आज हम आपको देश की ऐसे ही वीरांगना राजकुमारी के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपने शौर्य से दुश्मनों के दांत खट्टे किये थे और अपना नाम इतिहास में सदेव के लिए  अमर कर लिया |

राजकुमारी रत्नावती का इतिहास

जैसलमेर नरेश महारावल रत्नसिंह ने जैसलमेर किले की रक्षा अपनी पुत्री राजकुमारी रत्नावती को सौंप दी थी। इसी दौरान दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन की सेना ने किले को घेर लिया जिसका सेनापति मलिक काफूर था। राजकुमारी रत्नावती ने अपने पिता को चिंतामुक्त होने को कहाँ की आप दुर्ग की तनिक भी चिंता ना करे। जब तक मुझमे प्राण हे तब तक अल्लाउदीन इस दुर्ग की एक ईंट भी नहीं उठा पायेगा।

अपनी पुत्री के इस साहस भरे शब्दों को सुन रावल रत्नसिंह जी ने अस्त्र-शस्त्र धारण किये और निकल पड़े तुर्को से लोहा लेने। किले के सभी सामंत निकल चुके थे केसरिया धारण कर शाका करने। किले के द्वार से निकलते ही दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुवा।

किले के चारों ओर मुगल सेना ने घेरा डाल लिया किंतु राजकुमारी रत्नावती इससे घबराईं नहीं और सैनिक वेश में घोड़े पर बैठी किले के बुर्जों व अन्य स्थानों पर घूम-घूमकर सेना का संचालन करती रहीं। अत: उसने सेनापति काफूर सहित 100 सैनिकों को बंधक बना लिया।

राजकुमारी रत्नावती का इतिहास
राजकुमारी रत्नावती ( काल्पनिक चित्र )

सेनापति के पकड़े जाने पर मुगल सेना ने किले को घेर लिया। किले के भीतर का अन्न समाप्त होने लगा। राजपूत सैनिक उपवास करने लगे।

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Rajkumari Ratnawati History in Hindi

राजकुमारी रत्नावती भूख से दुर्बल होकर पीली पड़ गईं किंतु ऐसे संकट में भी राजकुमारी रत्नावती द्वारा राजधर्म का पालन करते हुए अपने सैनिकों को रोज एक मुट्ठी और मुगल बंदियों को दो मुट्ठी अन्न रोज दिया जाता रहा।

अलाउद्दीन को जब पता लगा कि जैसलमेर किले में सेनापति कैद है और किले को जीतने की आशा नहीं है तो उसने महारावल रत्नसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। राजकुमारी ने एक दिन देखा कि मुगल सेना अपने तम्बू-डेरे उखाड़ रही है और उसके पिता अपने सैनिकों के साथ चले आ रहे हैं।

राजकुमारी रत्नावती का इतिहास
राजकुमारी रत्नावती  युद्ध करते हुवे  ( काल्पनिक चित्र  )

मलिक काफूर जब किले से छोड़ा गया तो वह रोने लगा और उसने कहा- ‘यह राजकुमारी साधारण लड़की नहीं, यह तो वीरांगना के साथ देवी भी हैं। इन्होंने खुद भूखी रहकर हम लोगों का पालन किया है। ये पूजा करने योग्य आदरणीय हैं।’

ये थी भारत भूमि की वो वीरांगना जिसने अपने पराक्रम और बहादुरी से अपना नाम इतिहास के सुनहरे अक्षरों में हमेशा के लिए दर्ज़ करा लिया, इन को हमारा शत-शत नमन है।

Vijay Singh Rathore

मैं Vijay Singh Rathore, Karni Times Network का Founder हूँ। Education की बात करूँ तो मैंने MA तक की पढ़ाई की है । मुझे नयी नयी Technology से सम्बंधित चीज़ों को सीखना और दूसरों को सिखाने में बड़ा मज़ा आता है। 2015 से मैं ब्लॉगिंग कर रहा हूँ। खाली समय में मुझे किताबें पढना बहुत पसंद है। For Contact : vijaysingh@karnitimes.com

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