वीरांगना हाड़ी रानी क्षत्राणी। जब-जब राजस्थान का नाम कही भी लिया जाता है, तब-तब यहाँ के वीरों का शौर्य और वीरांगनाओं के बलिदान का जिक्र जरूर आता है। कहते है राजस्थान में खून सस्ता है और पानी महंगा है। आज हम आपको राजस्थान के इतिहास की उस घटना की बारे में बताते है।
जब एक रानी ने विवाह के महज सात दिन बाद अपना शीश खुद अपने हाथों से काटकर पति को निशनी के तौर पर रणभूमि में भिजवा दिया था। ताकि उसका पति उसके ख्यालों में खोकर कहीं अपना कर्त्वय ना भूल जाये। शादी को महज एक सप्ताह हुआ था। न हाथों की मेहंदी छूटी थी और न ही पैरों का आल्ता।
हाड़ी रानी क्षत्राणी – Hadi Rani Kshatrani History in Hindi
सुबह का समय था, चुण्डावत सरदार गहरी नींद में थे। रानी सज धजकर राजा को जगाने आई। इस बीच दरबान आकर वहां खड़ा हो गया। राजा का ध्यान न जाने पर रानी ने कहा, महाराणा का दूत काफी देर से खड़ा है।
आपके लिए कोई आवश्यक पत्र लाया है उसे अभी देना जरूरी है। चुण्डावत सरदार ने हाड़ी रानी को अपने कक्ष में जाने को कहा। चुण्डावत ने दूत से कहा इतनी सुबह अचानक क्या कोई संकट हे।
तब दूत ने कहा सचमुच बड़ी संकट की घड़ी आ गई है। चुण्डावत सरदार का मन आशंकित हो उठा। सचमुच कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी है। दूत युद्ध के लिए प्रस्थान करने का निर्देश लेकर आया था। अंत में जी कड़ा करके उसने चुण्डावत सरदार के हाथों में राणा राजसिंह का पत्र थमा दिया। राणा का उसके लिए संदेश था।
हाड़ी रानी क्षत्राणी के लिए पत्र में क्या था सन्देश
राणा जी ने चुण्डावत सरदार को दुश्मन सेना को मार्ग में ही रोकने का सन्देश दिया था। वही संदेश लेकर दूत चुण्डावत सरदार के पास पहुंचा था।
चुण्डावत सरदार का युद्ध जाना
एक क्षण का भी विलंब न करते हुए चुण्डावत सरदार ने अपने सैनिकों को कूच करने का आदेश दे दिया था। अब वह हाड़ी रानी से अंतिम विदाई लेने के लिए उनके कक्ष में पंहुचा।
केसरिया बाना पहने युद्ध वेष में सजे पति को देखकर हाड़ी रानी चौंक पड़ी, वह अचंभित थी। कहां चले स्वामी? सरदार ने कहा ‘मुझे यहां से अविलंब निकलना है। हंसते-हंसते विदा दो। पता नहीं फिर कभी भेंट हो या न हो।’ चुण्डावत सरदार का मन आशंकित था।
सचमुच ही यदि न लौटा तो। मेरी इस अर्धांगिनी का क्या होगा ? यही मन को कटोच रहा था सरदार को। एक ओर कर्तव्य और दूसरी ओर था पत्नी का मोह। इसी अन्तर्द्वंद में उसका मन फंसा था। विदाई मांगते समय पति का गला भर आया है यह हाड़ी रानी क्षत्राणी की तेज आंखों से छिपा न रह सका।
हालांकि चुण्डावत सरदार ने उसे भरसक छिपाने की कोशिश की। हताश मन व्यक्ति को विजय से दूर ले जाता है। उस वीर बाला को यह समझते देर न लगी कि पति रणभूमि में तो जा रहा है पर मोहग्रस्त होकर।
पति विजयश्री प्राप्त करें इसके लिए उसने कर्तव्य की वेदी पर अपने मोह की बलि दे दी। वह पति से बोली स्वामी जरा ठहरिए। मैं अभी आई। वह दौड़ी-दौड़ी अंदर गई। आरती का थाल सजाया।
पति के मस्तक पर टीका लगाया, उसकी आरती उतारी। वह पति से बोली। मैं धन्य हो गयीं, ऐसा वीर पति पाकर। हमारा आपका तो जन्म जन्मांतर का साथ है। राजपूत रमणियां इसी दिन के लिए तो पुत्र को जन्म देती हैं, आप युद्धभूमि में जाये स्वामी विजय को प्राप्त करे।
चुण्डावत सरदार युद्ध के लिए निकल गया आज सरदार की सेना हवा से बातें करती उडी जा रही थी। किन्तु चुण्डावत के मन में रह रह कर आ रहा थी कहीं सचमुच मेरी पत्नी मुझे बिसार न दे?
वह मन को समझाता पर उसका ध्यान उधर ही चला जाता। अंत में उससे रहा न गया। उसने आधे मार्ग से अपने विश्वस्त सैनिकों के रानी के पास भेजा। उसको फिर से स्मरण कराया था कि मुझे भूलना मत। मैं जरूर लौटूंगा। और रानी के लिए संदेश भिजवाया कि पत्र वाहक द्वारा कोई अपनी प्रिय निशानी अवश्य भेज देना।
हाड़ी रानी क्षत्राणी का राजा के पत्र का जवाब
हाड़ी रानी क्षत्राणी पत्र को पढ़कर सोच में पड़ गयीं। युद्धरत पति का मन यदि मेरी याद में ही रमा रहा, उनके नेत्रों के सामने यदि मेरा ही मुखड़ा घूमता रहा तो वह शत्रुओं से कैसे लड़ेंगे। उसके मन में एक विचार कौंधा।
वह सैनिक से बोली वीर ‘मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशान दे रही हूं। इसे ले जाकर उन्हें दे देना। थाल में सजाकर सुंदर वस्त्र से ढंककर अपने वीर सेनापति के पास पहुंचा देना। किन्तु इसे कोई और न देखे। वे ही खोल कर देखें। साथ में मेरा यह पत्र भी दे देना।’
हाड़ी रानी क्षत्राणी के पत्र में लिखा था ‘प्रिय। मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं। तुम्हारे मोह के सभी बंधनों को काट रही हूं। अब बेफ्रिक होकर अपने कर्तव्य का पालन करें मैं तो चली… स्वर्ग में तुम्हारी बाट जोहूंगी।’
हाड़ी रानी क्षत्राणी का बलिदान
पलक झपकते ही हाड़ा रानी ने अपने कमर से तलवार निकाल, एक झटके में अपने सिर को उड़ा दिया। वह धरती पर लुढ़क पड़ा। सिपाही के नेत्रों से अश्रुधारा बह निकली।
कर्तव्य कर्म कठोर होता है सैनिक ने स्वर्ण थाल में हाड़ी रानी के कटे सिर को सजाया। सुहाग के चूनर से उसको ढका। भारी मन से युद्ध भूमि की ओर दौड़ पड़ा।
सरदार ने दूत से कहा ‘रानी की निशानी ले आए?’ दूत ने कांपते हाथों से थाल उसकी ओर बढ़ा दिया। चुण्डावत सरदार फटी आंखों से पत्नी का सिर देखता रह गया। उसके मुख से केवल इतना निकला ‘उफ् हाय रानी। तुमने यह क्या कर डाला।
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संदेही पति को इतनी बड़ी सजा दे डाली खैर। मैं भी तुमसे मिलने आ रहा हूं।’ चुण्डावत सरदार के मोह के सारे बंधन टूट चुके थे। वह शत्रु पर टूट पड़ा। इतना अप्रतिम शौर्य दिखाया था कि उसकी मिसाल मिलना बड़ा कठिन है।
जीवन की आखिरी सांस तक वह लड़ता रहा। औरंगजेब की सहायक सेना को उसने आगे नहीं बढऩे दिया, जब तक मुगल बादशाह मैदान छोड़कर भाग नहीं गया था। इस विजय को श्रेय किसको?
राणा राजसिंह को या चुण्डावत सरदार को। हाड़ी रानी को अथवा उसकी इस अनोखी निशानी को? “चुण्डावत मांगी सेनाणी , सर काट दे दियो क्षत्राणी”
धन्य हे वो वीरांगना क्षत्राणी हाड़ी रानी और उनकी मातृभूमि के प्रति समर्पण को , शत् शत् नमन
FAQ’s
हाड़ी रानी की मृत्यु कैसे हुई?
हाड़ी रानी के विवाह के मात्र सात दिन गुजरे थे, और राजा को युद्ध में जाना पड़ा। किन्तु पत्नी मोह राजा से छूट नहीं रहा था, इसलिए उन्होंने रानी से कुछ निशानी मंगवाई। इस बात से रानी चिंता में पड़ गई और राष्ट्रहित हेतु अपना सर काटकर निशानी के रूप में भिजवा दिया। ताकि राजा बिना मोह युद्ध कर सके। इस तरह रानी वीरगति को प्राप्त हुई थी।
हाड़ी रानी का पूरा नाम क्या था?
इतिहास में प्रसिद्ध हाड़ी रानी क्षत्राणी का नाम सलेह कँवर था। बूंदी के शासक भाव सिंह हाड़ा के पुत्र संग्राम सिंह हाड़ा के घर जन्म बसंत पंचमी के दिन इनका जन्म हुवा था।
हाड़ी रानी बटालियन की स्थापना कब हुई?
सभी तरह की संभावनाओं से निपटने के लिए राज्य की पहली महिला बटालियन के रूप में हाड़ी रानी बटालियन की स्थापना 2008 में की गई थी। इसका मुख्यालय अजमेर में स्थित है।