दिवेर का युद्ध | Battle Of Diver History In Hindi

दिवेर का युद्ध । वीरों और वीरांगनाओ की इस पावन धरा राजस्थान ने सैकड़ो युद्ध देखे है, किन्तु मेवाड़ के दिवेर नामक स्थान पर महाराणा प्रताप ओर अकबर के मध्य हुवे इस युद्ध को इतिहास में “मैराथन युद्ध” के नाम से जाना जाता है । यह युद्ध राजपूतों और मुगलों …

दिवेर का युद्ध । वीरों और वीरांगनाओ की इस पावन धरा राजस्थान ने सैकड़ो युद्ध देखे है, किन्तु मेवाड़ के दिवेर नामक स्थान पर महाराणा प्रताप ओर अकबर के मध्य हुवे इस युद्ध को इतिहास में “मैराथन युद्ध” के नाम से जाना जाता है । यह युद्ध राजपूतों और मुगलों के बिच निर्णायक युद्ध साबित हुवा था। महाराणा प्रताप ने इस मैराथन में विजयश्री प्राप्त की थी। आज हम आपको इसी युद्ध के विषय मे कुछ महत्वपूर्ण पूर्ण जानकारी देने जा रहे है :-

दिवेर का युद्ध इतिहास

हल्दीघाटी युद्ध में निर्णय ना निकलने के बाद अकबर के महाराणा प्रताप को बंदी बनाने की मंशा विफल हो गई थी। हल्दीघाटी के संग्राम के बाद अकबर ने 5 वर्षो तक महाराणा प्रताप को पकड़ने हेतु अपनी सैनिक टुकड़ी को लगाए रखा था, किन्तु महाराणा को कभी वह बंदी ना बना सका।

इतिहास में दर्ज तथ्यों के आधार पर हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी मेवाड़ में महाराणा और चितौड़ की मुद्रा चलन में थी और वहाँ सभी कर मेवाड़ के नाम से वसूले जा रहे थे। इससे यही ज्ञात होता हे की हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय हुई थी। इतिहासकार दिवेर के युद्ध को हल्दीघाटी का दूसरा भाग ही कहते है।

दिवेर का युद्ध | Battle Of Diver History in Hindi
दिवेर का युद्ध दृश्य

दिवेर का युद्ध – मैराथन युद्ध

जब हल्दीघाटी का युद्ध बिना परिणाम के रहा तब महाराणा प्रताप जंगलो में चले गए थे । महाराणा अरावली की श्रेणियों में बस गए ताकि अपनी शक्ति को पुनः संघठित कर सके । उस समय दिवेर छापली उनके निवास का नया स्थान बना था ।

दिवेर छापली का स्थान वर्तमान अरावली पर्वत श्रेणियों के मध्य राजसमंद जिले में स्थित है । यह स्थान मेवाड़ के अधीन ही आता था । किसी समय यहाँ रावत क्षत्रियों का राज हुवा करता था । इस मुश्किल की घड़ी में भामाशाह ने महाराणा प्रताप की बहुत आर्थिक मदद की थी, उसी से महाराणा ने शक्तिशाली सेना का पुनः गठन किया था ।

दिवेर के युद्ध मे पहले महाराणा ने छापामार युद्ध पद्दति का उपयोग किया था । जिसमे अरावली के दुर्गम और भटकाव भरे रास्तों में सैनिक मुगल सेना पर गुरिल्ला युद्ध अपनाते थे । इससे मुगल सेना की कमर तोड़ दी थी ।

दिवेर का युद्ध अक्टूम्बर 1582 को विजयदशमी के दिन दिवेर छापली नामक स्थान पर हुवा था । इस युद्ध मे महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को दो प्रमुख भागो में बांट कर युद्ध का बिगुल बजा दिया था । इस युद्ध के समय महाराणा ने मगरांचल राज्य के मनकियावास, कालागुमान, दिवेर, छापली, काजलवास स्थानों पर ज्यादातर समय व्यतीत किया था, ओर वहाँ के स्थानीय निवासियों से सहायता ली थी ।

दिवेर-छापली का युद्ध

दिवेर के युद्ध मे मुगल सेना का नेतृत्व अकबर के चाचा सुल्तान खां ने किया था । विजयादशमी के दिन रणभूमि की चौसर सज चुकी थी । मेवाड़ी सेना का जोश चरम पर था । राणाकड़ा ओर राताखेत नामक स्थान पर दोनों सेनाओ में भयंकर युद्ध हुवा ।

इस युद्ध मे सेना की एक टुकड़ी की कमान महाराणा खुद संभाले थे । तो दूसरी सेना का भार कुँवर अमरसिंह ने उठाया था अमरसिंह जी ओर स्थानीय रावत राजपूतों ने मुगल सेना पर भीषण प्रहार किया, उससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची थी । कहते है कि इस युद्ध मे अमरसिंह ने अपने भाले से मुगल सेनापति सुल्तान खां पर ऐसा प्रहार किया कि भाला उसे चीरता हुवा घोड़े के आर-पार निकल जमीन में धस गया था ।

दिवेर का युद्ध | Battle Of Diver History in Hindi
दिवेर का युद्ध

दिवेर युद्ध का परिणाम

अपने प्रमुख सेनापति और बाकी सेना की ऐसी दुर्दशा को देखकर मुगल सेना के पांव उखड़ गए और वह भाग खड़ी हुई । राजपूती तलवारों की धार देखकर मुगल सेना में भयकर भगदड़ मच गई । मेवाड़ी सेना ने अजमेर तक मुगल सेना को खदेड़ दिया । इस युद्ध मे 36 हजार मुगल सैनिको ने महाराणा प्रताप के आगे घुटने टेककर आत्मसमर्पण कर दिया ।

दिवेर के युद्ध मे महाराणा प्रताप की विजय हुई । इस युद्ध के पश्चयात मेवाड़ में बनी सभी मुगल चौकियों से सुल्तान की सेना भाग गई और मेवाड़ के किले पर पुनः महाराणा प्रताप का ध्वज लहराया ।

FAQ’s

हल्दीघाटी युद्ध में किसकी विजय हुई थी?

हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी मेवाड़ में महाराणा प्रताप की मुद्रा चलन में थी, और सभी कर भी महाराणा के नाम से ही लिए जाते थे। युद्ध के 10 वर्षो बाद भी अकबर महाराणा को नहीं पकड़ पाया था। इन सभी तथ्यों से यही ज्ञात होता है की 1576 में हुवे हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय हुई थी।

दिवेर का युद्ध कब हुवा था?

दिवेर का युद्ध विजयदशमी के दिन अक्टूबर 1582 को दिवेर छापली नामक स्थान पर महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बिच हुवा था। इस युद्ध में अकबर की सेना मेवाड़ की सेना का शौर्य देखकर भाग खड़ी हुई थी।

दिवेर के युद्ध का क्या महत्त्व है?

दिवेर के युद्ध का सामरिक और भौगोलिक दोनों दृस्टि से बड़ा महत्त्व है, क्योंकि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना के आगे 30 हजार मुगल सैनिको ने आत्मसमर्पण किया था। इस युद्ध में मुगल सेना को महाराणा ने अजमेर तक खदेड़ दिया था, उसके पश्च्यात मुगलों का मेवाड़ आने का साहस नहीं हुवा।

अमर सिंह ने कितने युद्ध लड़े थे?

दिवेर के युद्ध में अमर सिंह ने एक सेना का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने अपने जीवन में कुल 18 बार युद्ध किया था और सभी में उनको विजय प्राप्त हुई थी।

अकबर किससे डरता था?

हल्दीघाटी युद्ध में जब अकबर ने महाराणा प्रताप का युद्ध कौशल देखा और युद्ध के 10 साल बाद भी वह उन्हें नहीं पकड़ पाया था, महाराणा ने गोरिल्ला युद्ध से मुग़ल सेना को भारी क्षति पहुंचाई थी। तब कहते की अकबर महाराणा प्रताप से इतना डर गया था की रात में नींद से उठ जाया करता था।

निष्कर्ष : दिवेर का युद्ध – Battle Of Diver

मेवाड़ में जितने भी युद्ध हुवे है, उनमे दिवेर का युद्ध (Battle Of Diver History In Hindi )निर्णायक साबित हुवा था। इस लेख में हमने पूर्ण प्रयास किया है की पाठकों तक सही जानकारी प्रदान कर सके। हमारी वेबसाइट Rajput’s Wiki पर हम ऐसे ऐतिहासिक महत्त्व के लेख प्रकाशित करते रहे, इसलिए हमसे जुड़े रहे।

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Vijay Singh Rathore

मैं Vijay Singh Rathore, Karni Times Network का Founder हूँ। Education की बात करूँ तो मैंने MA तक की पढ़ाई की है । मुझे नयी नयी Technology से सम्बंधित चीज़ों को सीखना और दूसरों को सिखाने में बड़ा मज़ा आता है। 2015 से मैं ब्लॉगिंग कर रहा हूँ। खाली समय में मुझे किताबें पढना बहुत पसंद है। For Contact : vijaysingh@karnitimes.com